जाने उस किरदार ने कितनी बार हँसाया है,
ऐसेई हमारा नाम सूरमा भोपाली नहीं है !
पर हर गली की नुक्कड़ में देखो ..!
एक सुरमा नज़र हमें भी आया है ...।
अपने मुहल्ले तक सीमा बाँध रखी,
दूसरी गली में ..मार खा खा के आया है !
असल सूरमा का लोहा कम ने ही दिखाया है,
बकौल खुदा ! वो हमारे बीच में निकल आया है ..।
वो वी .टी स्टेशन पे चाय वाला राजू हो ..!
या ..युवी जिसने कैंसर से लड़ के छक्का जमाया है ..।
एक वक्त है...! जिसने किसी को बातों का खजांची ,
तो किसी ने दम ख़म का लोहा दिखाया है ...।
वक्त होते साबित होगा ..!
हम वो सुरमा हैं या…
य…।?
किस हकीकत को हमने झुठलाया है !
बाते बड़ी बड़ी पर छोटी-छोटी ज़रूरत पे,
हर बंदा बिकते ही नज़र आया है ..।
कुछ लम्हे के लिए लगती फ़िज़ूल बातें .. ज़मीर , ईमान .. !!
पर सौदे के बाज़ार में सबको बिकता ही पाया है ।
सही कहा किसी ने :"सस्ते दामों में खुदा बिकते ! "
हां ! साहब ... हमने खुदा को सस्ती खुशबू के मज़े लेता पाया है ।
रूह की खुशबू नहीं भाती उसे ...!
उसे तो बस .. लोभ है माया का ...।
वो देखो ..... देssखो ...देs s s खो ... अरे ...!
अभी धक्का दे कर युवा हमारा,
एक बूढी माँ को ..!
माँ की आरती पे एक रूपया उसने चढ़ा आया है ।
मजे करो ... व्रत रखो .. व्रत !
ऐसे आगे निकलने वाला भूखा जाने किधर पँहुच पाया है ??
खैर….
सब प्रभु की माया है
----------------------अनुराग त्रिवेदी -एहसास
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