हाल वही, क्या अंतर कहूँ, मुंशी जी !
अभिभावक कर्ज़े की किश्तों में पिस रहा
निरंतर ही गृहस्थी की चिंता में घिस रहा
पर उनके लख्ते-जिगर बेखबर हैं !
मस्तियाँ ही करते, वो आते नज़र हैं
यौवन के नशे में डूबे हुए को,
क्या मै 'ईदगाह' पढ़वाऊं, मुंशी जी !
क्या मै इस पत्र में लिखूं, मुंशी जी ?
हाल वही, क्या अंतर कहूँ, मुंशी जी !
जिसके सामर्थ्य से वो बड़े होकर बना 'बड़ा'
उसी पिता को वृद्धाश्रम में जाकर रहना पड़ा
उन संतानों के कुकर्मों का कैसे मै बखान करूँ
कलयुग की विडंबना को कैसे मै बयान करूँ श्रवण कुमार के इस देश की हालत,
क्या मै आज तुम्हे बताऊँ, मुंशी जी !
क्या मै इस पत्र में लिखूं, मुंशी जी ?
हाल वही, क्या अंतर कहूँ, मुंशी जी !
देश आज लक्कड़ सा सीत रहा
दिमाग अराजकता का जीत रहा
ढोंग -पाखंड ही अब धर्म बना
धूर्तता-कामचोरी ही कर्म बना
किन लफ़्ज़ों में दूँ तुम्हे शुभकामनायें !
जन्म दिवस तुम्हारा कैसे मनाऊं, मुंशी जी !
क्या मै इस पत्र में लिखूं, मुंशी जी !
हाल वही, क्या अंतर कहूँ, मुंशी जी !
देश को आज दलालों ने नोच खाया
मुद्दों की सीढियां लगा नेता कुर्सी पाया
ये उल्टी गिनतियों पर टिके
छोटी ज़रूरतों के लिये बिके
कौन है जो आज महा-पुरुष है ?
जिसकी गाथा मै तुम्हे सुनाऊं, मुंशी जी !
क्या मै आज तुम्हे बताऊँ, मुंशी जी !
क्या मै इस पत्र में लिखूं, मुंशी जी !
अनुराग त्रिवेदी ...'एहसास'
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