पता होने पर भी, वही बात क्यूँ करते हैं ?
जिसमें मन को कचोटते उत्तर मिलते हैं ...
प्रश्न का चयन ठीक से क्यूँ नही करते हैं ?
क्यूँ उत्तर पहले ही मिल जाया करते हैं ?
ऐसे ही कितने भाव उमड़ते-घुमड़ते हैं ...
ये वो बादल हैं बिन बरखा बरसते हैं |
इंसान दोपहर की धूप में...! साँझ को फिर,
रैन गुज़रते, सुबह फिर प्रश्न ही प्रश्न रखते हैं ।
उत्तर जाने किस दिशा के हैं पथिक कि !
कभी भोले मन को भूले से नही मिलते हैं ।
अनुराग त्रिवेदी ....एहसास
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