कितनी ही बातें हैं, जो कहनी हैं मुझे, माँ !
पर तुझसे क्यूँ उन्हें, कह पाता मै नहीं ?
जज़्बात हैं इतने गहरे कि उठा भी न पाऊं ?
लफ़्ज़ों को संजीदगी से रख पाता मै नहीं ।
तुम तो हो साया सा, मेरे जीवन का !
बिन तेरे इक कदम, निकाल पाता मै नहीं ।
हो मेरे सफ़र में... हर मुकाम में तुम हो !
मंज़िल कोई अपनी बना पाता मै नहीं ।
करूँ बस वो, जो लबों पे तेरे खुशी लेकर आये !
इसके सिवा और कुछ, कर पाता मै नहीं ।
उसी तोतली आवाज़ से पुकारा करूँ तुम्हे !
वो बे-इंतिहाँ खुशी आज तुम्हे, दे पाता मै नहीं ।
यकीन है, कि समझती हो तुम मुझे,
बातें तभी तुमसे, बना पाता मै नहीं ।
अनुराग त्रिवेदी .....एहसास
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