Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मन की बाते ..!

 

 

मन की बाते नहीं पढ़ना चाहिए !
दुःख ही दुःख होता है ..|
मन नाज़ुक है, दुसरे को पढ़ते ही,
अक्सर भावुक होता है ..।
इधर तो मुँह में कुछ मन में कुछ !
सभी के छुपा होता है ..।
जुबान मीठी, शक्कर है फेल,
तीखा भाव दबा होता है ।
रिश्ते बनते, पनपते चलते चलते !
मन ही है, जो सामंजस्य रखता है ।
जो पढ़ बैठे मन की बाते, सच मानिये !
बहुत-बहुत दुःख होता है ।
मन की बाते नहीं पढ़ना चाहिए ..।
पर ये भी सच ही है कि,
मन, मन से जुड़े तभी,
ये मन का पौधा हरा-भरा होता है ।
पढ़ ही लेता ना ना करते,
भले पढ़ के कभी दुखी भी होता है !

 

 

-------अनुराग त्रिवेदी ....एहसास

 

 

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