वासु के कण कण को चूम कर,
नभ तक उड़ कर जाना है ।
माँ ! गीत मुझे गुनगुनाना है ।
कहूँगा बात कई, एक पर आना है,
ऐसा मधुर तराना मुझे बनाना है ।
फिर संस्कारों को सिरे से जगाना है ।
माँ ! मुझे भी गीत गुनगुनाना है ।
रहा दबा अनुराग कहीं पर,
मिट्टी को शीश अपने लगाना है ।
माँ ! आओ मन आराध्य बनके,
मुझे गीत एक ऐसा गुनगुनाना है ।
कट रहा है, बट रहा है मन हर क्षण !
भटकी इन्द्रियों को फिर जुटाना है ।
माँ ... बाबा !
मुझे सार्थक सृजन कर दिखाना है ।
" खुब लडी मर्दानी सा लिख !! "
खोते ओज को फिर उकसाना है ।
"फ़टे है जुते मुँशी के अब .... "
फटेहाल चरित्रों को फिर उठाना है ।
बातें बड़ी-बड़ी जो करते हैं,
उन्हे आईना दिखलाना है ।
सुन रही हो ना .......... माँ !
माँ मुझे गीत ऐसा गुनगुनाना है ।
आग जगे इस दिल में, अन्दर तक !
अन्दर की आग को भडकाना है ।
तड़प उठे पढ़ कर अभागे हैं जो !
उनके भाग्य को मुझे जगाना है ।
बताओ क्या जतन करुँ मैं,
कैसे वो स्वर को सजाना है ?
बताओ माँ ... आओ माँ !
मुझे गीत कोई ऐसा गुनगुनाना है ।
: अनुराग त्रिवेदी 'एहसास'
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