Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुद्दे क्यूँ भटक जाते हैं ... ?

 

 

कैसे मुद्दे मकसद की मुखालफत करते हैं !
मामला दुष्कर्म का था ...
रजामंदी की उम्र कम किया करते हैं ।
सज़ा का ज़िक्र होना था ...!
रज़ा की फ़िक्र किसने पूछी थी उनसे ?
पर ये है, कि ये सयाने ...
मशाल थामे जवानों के हाथों में,
लॉली-पॉप थमा दिया करते हैं ।
कहते-कहते बुज़ुर्ग गया ...
सच्चा भारत गाँवों में बसता है !
कानून पश्चिम का हवाला दे-देकर,
महानगरों के लिए बनते हैं ।
ये वो मवेशी हैं ...! जो चारा तो क्या ....?
भविष्य की फसलें भी खा जाया करते हैं ।
सोलह की उम्र में भोला मन,
क्या पहने ठीक से तय नहीं कर पाता है ...!
कैसे फिर ऐसे फैसलों को वो ले सकते हैं ?
ज़रूरत नहीं चर्चा की अविराम वही ...
अपनी राय लिख कर भेजो, हाँ या नहीं ।
नहीं ...नहीं ... नहीं ...।
पर नहीं ...जिन्होंने कभी सोचा नहीं ...!
क्या है ...right of justice ..?
क्या है ...right of information ?
वो बेचारे बहुत दिलचस्पी से इस कानून की,
ज़िक्र, फ़िक्र और जिरह किया करते हैं ।
अरे ..! क्या था वो किस्सा दिल्ली वाला ?
बस ऐसे ही ...! अब कोई नहीं बचना ...
नादान बेचारे ! खादी की मकड़ी के जालों में,
आहिस्ता- आहिस्ता फँस जाया करते हैं ।

 

 

 

: अनुराग त्रिवेदी ...'एहसास'

 

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