कब भला प्रश्न पीछा छोड़ा करते हैं ?
मनुष्य को निरंतर ही तोडा करते हैं ।
कुछ सामाजिक, कुछ व्यावहारिक, कुछ आर्थिक होते,
अबाध श्रृंखला में आते, दिशाएं मोड़ा करते हैं ।
सुलभता से स्वीकार हो जाये प्रश्न तो उत्तम,
अन्यथा विराम देते नहीं और पूछा करते हैं ।
जीवट हैं वो, जिन्होंने अनदेखा किया प्रश्नों को !
वही प्रसन्नता की सुगमता पा लिया करते हैं ।
ये प्रश्न का अकाल पड़ता है भारी !
सदैव यही संवेदनाओं का रक्त चूसा करते हैं ।
ग्रहण का भाव उपजा, नास्तिक बनाया करते हैं !
जाने ये कैसे बादल हैं, जो बारहमास बरसा करते हैं ?
मैंने पूछा जो प्रश्न उनसे कभी !
वो भी प्रश्नवाचक मुस्कान दे दिया करते हैं ।
*************अनुराग त्रिवेदी-एहसास
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