Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जनरल का डिब्बा

 

 

मैं हूँ जनरस डब्बा
मतलब आम आदमी का आम डिब्बा
जब भी कोई चाहे आये जायें
आघा से ज्यादा आदमी बिन किराये ही
रेल यात्रा करें
खायें फेंके इधर से उधर
थुक थाक कर गंदा
यहाँ वहाँ फैलाये
रेल के समान को अपने बाप का
माल का समझ कर
खोले और ले जाये!
पंखा बोल बत्ती रामभरोसे
चलती छोड़ चले जाये
बंद करना नौकर का समझे
बैठे जनरल बैगी में डिंगहाके ए.सी की!

 

 

भीड़ होने पर आदमी पे आदमी चढ़ा जाये
पसीने से तरबतर हुआ जाये
महिलाओं को देख मुँह व आँख
फाड़े का फाड़े रह जाये

 

 

रेल की दशा पे एक दुसरे से बकथोथरी कर
रेलमंत्री और प्रधानमंत्री को गरियायें!
राजनीति हम सब खुब जानते है
देश हमारा है
अपना कर्तव्य हम खुब पहचानते है
हम सभ्य देश के जिम्मेदार नागरिक है
पर क्या करे हम आम आदमी
आम डब्बे में सब भूल भाल जाते है
क्योंकि ये काम तो
खास लोंगों व सरकार का है
जो ए.सी में लाटसाहब बनके
सफर करते है
इंनक्मटेक्स रिर्टन भी
सबसे ज्यादा भरते है!

 

 

कुमारी अर्चना

 

 

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