मरघट हूँ मैं
जीव का मोक्ष है यदि ईश्वर
तो शरीर का मोक्ष हूँ मैं!
फिर मेरा नाम आते ही आत्मा क्यों कांप जाती सबकी
इतना द्वेष व धृणा क्यों मुझसे
मानव बस्ती से अति दूर रहता हूँ
फिर भी भय रूप में उनके जेह़न में बस जाता हूँ !
मानव कंकालों का घर हूँ
सड़ी गली लाशों का ढ़ेर हूँ
इसलिए शमसान भी कहते है मुझे!
जलते शरीरों के अंगों व उड़ते राखों का अवशेष हूँ
मरघट हूँ मैं
जो आया है यहाँ वो एक दिन मेरा पास आएगा
मैं शरीर की अंतिम यात्रा हूँ परमात्मा से मिलन की!
कुमारी अर्चना
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