पवन बहुत खुश था कि उसे अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी मिल गई थी लेकिन वहीं कुछ परेशान भी था | अब घर आँगन का सीमित गमले का पौधा जंगल के विस्तृत क्षेत्र के किस्म किस्म के पेड़ पौधो के संग कैसे जमेगा | जन्म से पच्चीस साल तक जिसने कभी अपने शहर की सीमा तक नहीं लांघी पर अब उसे अब अपने प्रदेश से बाहर निकलना था | उसे नौकरी की लिये उत्तर भारत से दक्षिण भारत कि ओर जाना था | उसे अपने रहने खाने कि चिंता नहीं करनी थी, सब ऑफिस कि ओर से था वरन, उसकी चिंता तो कुछ और ही थी |
नए सूटकेस में समान पैक करके सुव्यस्थित कपड़ो के साथ ट्रेन में एक लंबी यात्रा का मन बना कर वह चल दिया | ए0 सी0 कपार्टमेंट में वह बैठा अपने भविष्य की योजना बना रहा था | उसने देखा की उसके सामने की सीट पर एक आदमी बैठा है जो उसे अजीब लगा | अजीब इसलिये की ट्रेन के ए0 सी0 कोच में वह सुकड़ी ओर फीकी शर्ट वाला आदमी क्यो है ? वहाँ कोई सुटेड - बूटेड आदमी होना चाहिए था | वह देखता है की उस आदमी ने बाथरूम स्लिपर पहनी है | पवन को अचानक से उस आदमी से एक चिड़ सी हो जाती | उसे लगता है की वह आदमी इस कोच के बिल्कुल लायक नहीं है | तय समय पर यात्रा समाप्त हुई | पवन ट्रेन से उतरा साथ ही उतरी उसकी चिंता | अपने देश के इस अंजान हिस्से में किसी अजनबी सा वो अपने चारों ओर देखता है | देखता है लोग बाग जल्दी जल्दी अपनी भाषा बोल रहे है, जिनकी न उसे बात समझ आ रही थी और न भाषा ये बात अलग थी की एक मध्यस्थ भाषा अंग्रेजी से उसका काम चल रहा था | अंजान लोगो से घिरा पवन उन्हे अपनी अजनबी निगाह से देखता सोचता आगे बढ़ रहा था ' काश कोई दो शब्द ही हिन्दी का बोल दे '|
'अरे आपको भी यहीं उतरना था , चलिए कोई तो अपना सहभाषी मिला' | वह मुस्कराता है | पवन अचानक से खिल उठता है , पर ये क्या ? ये तो उसकी सामने की सीट वाला वही व्यक्ति है | लेकिन अब पवन को उसे देख वही चिढ़ का अहसास नहीं हुआ बल्कि वह उसे अपने निकटस्थ जैसा निकट लगा | वह सहर्ष उससे हिन्दी में बात करता बाहर निकलने लगा | रेतीली भूमि पर जीवन की चंद बूंदों से ही उसका अतृप्त मन तृप्त हो गया |
अर्चना ठाकुर
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