लगा रक्खी है उसने भीड़ मज़हब की, सियासत की
मदारी है, भला समझेगा क्या क़ीमत मुहब्बत की
महल तो सबने देखा, नींव का पत्थर नहीं देखा
टिकी है ज़िंदगी जिस पर भरी-पूरी इमारत की
~ कृष्ण कुमार नाज़
Yogender yadav की वाल से साभार
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लगा रक्खी है उसने भीड़ मज़हब की, सियासत की
मदारी है, भला समझेगा क्या क़ीमत मुहब्बत की
महल तो सबने देखा, नींव का पत्थर नहीं देखा
टिकी है ज़िंदगी जिस पर भरी-पूरी इमारत की
~ कृष्ण कुमार नाज़
Yogender yadav की वाल से साभार
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