Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

*मुस्कान*

 
*मुस्कान*

क्या बताऊं... कैसे बयान करूँ उसकी शख्सियत को, भोली मुस्कान की मलिका कहूँ या फिर मासूम दिल की परी... उसका आज देख कर उसकी तारीफ करते होंगे, और कुछ बुरा बोलने में भी पीछे नहीं होंगे... लेकिन इस मुस्कराती हसी और इसके पीछे के दर्द, परिश्रम को भी देखने की कोशिश करे कुछ भी राय बनाने से पहले... जिस दिन उसकी परेशानियों को समझ लोगे उस वक़्त से बस उसके लिए कुछ भी बुरा नहीं सोच पाओगे... है वो थोड़ी नादान, नहीं समझ है उसको इस मतलबी दुनिया की... खुद जैसा समझती है वो हर शक़्स को... अब कौन समझाए उसको की वो इंसानियत  के उस दौर में सांस ले रही है जहाँ खुद इंसानियत वेंटीलेटर पर चल रही है... उसकी ऊंचाई को तो आपने देख लिया जरा नज़र को शुरुआत जहाँ से की है उस तरफ भी दौड़ा लीजिए... अभी तो बस उसको पहचाना है आपने... जिस दिन समझ जाओगे उसको, फिर बताना कि वो कैसी है... मैं तो समझने में ही लगा हूँ अभी... पहचानने में वक़्त लगेगा... लेकिन इतना समझ में आ गया है की माँ के सपनो को पूरा करना और जीना हर किसी के नसीब में नहीं होता. - AKP

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ