मैं... अब मैं नहीं रही
वह अपना करियर बनाना चाहती थी लेकिन उसका पति... बड़े अरमान थे उसके की एक दिन किसी बड़ी कंपनी में बड़े पोजीशन पर काम करुँगी, और अपने सारे सपने पुरे करुँगी. लेकिन अगर सबके सपने पुरे होने लगे तो फिर क्या ही कहने है ज़िन्दगी के, एक शाम की बात है जब वो खुश थी उसके चेहरे की हसी मानो एक छोटे से जुगनू की तरह अँधेरे में उम्मीद की किरण दिख रही थी... उसे क्या पता था उसकी इसी मुस्कान उससे ज़िन्दगी की सबसे बड़ी सीख दे जायेगी... कोई और भी था वहां जिसे उसकी मुस्कान से इश्क़ हो गया फिर क्या पहुँच गया पुरे परिवार के साथ शादी का प्रस्ताव ले के... और फिर वही सब हुआ जो अधिकतर लड़कियों के साथ होता आया है... शादी न हुई तो ज़िन्दगी सफल नहीं हुई कुछ यही सोच रखते हैं ना हम लोग... माँ बाप की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी देखने वाली हो गयी राज़ी… शादी होते ही शुरू हो गया एक लड़की की आज़ादी का गला घोंटना... पहले सोचने की आज़ादी छीन ली गयी, फिर एक एक करके उससे उसके होने न होने का हक़ भी खत्म कर दिया गया… बंधन में बंध तो गयी थी लेकिन उसे ये नहीं मालूम था कि शादी के बाद वो बस एक चलता फिरता रोबोट बन जाएगी, जो काम तो सब करे लेकिन जवाब ना दे बस… आज भी वो खुश रहने का अभिनय करती है… कलाकार जो ठहरी ज़िन्दगी की अब उसकी ख़ुशी बस उसके बच्चों की हसी और प्यार में ही सिमट कर रह गयी है…कई दफा सोचने पर मजबूर हो जाती थी, की इतना पढ़ लिख के क्या हुआ जब दिन भर किचन में ही ड्यूटी देनी है… फिर एक दिन उस मुरझाये पौधे को किसी ने पानी दे के ज़िंदा रखने की कोशिश की और एक जॉब का ऑफर दिया… खुश थी वो उस दिन लेकिन डर भी रही थी कि मना कर दिया तो शायद टूट ही जाउंगी, अपने पति से उस नौकरी को करने की इक्छा जताई… फिर वही सुनने को मिला जो बोलने वाले के लिए जितना आसान होता है सुनने वाले के लिए उतना ही मुश्किल… मानो जेहर को गुड़ का नाम दे के खिला दिया हो किसी ने ऐसा फील हो रहा था उस पल… जवाब मिला कि घर कौन संभालेगा, कैसे रहेंगे सब… जिसके कुछ घंटे न होने से घर नहीं संभल सकता कम से कम यही सोच के उसको अपने मनन का करने की आज़ादी दे दो… ये बस एक सोच थी जो उस उदास दिल ने बोलना चाहा लेकिन चुप रह गया… करियर तो नहीं बना पायी वो, हाँ एक चार दिवार के घर को महल बना दिया… जहाँ हर किसी की इक्छा पूरी कर रही थी अपनी इक्छा का गला दबाके.
AKP
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