Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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परछाईयाँ बबूल की

 

परछाईयाँ बबूल की
सवाल कर रहीं
अनगिनत,
बबूल से
जवाब हजार माँगती
पल में
विनम्रता में
हे ! बबूल
क्या मैं काल्पनिक हूँ ?
या प्रत्यक्ष
तेरे अंदर बसी भावना हूँ
शाम मुझे खींचती
क्या मैं उसकी तलाश हूँ ?
बबूल विनम्र हुए
बतिआए,
तुम आज़ाद हो
संसार में
चलायमान सरताज हो
न किसी का अंग
न भावना
एक अद्द्भुत चमत्कार हो
हर किसी के साथ
चलने वाली
महाशक्ति हो !

 

 

अशोक बाबू माहौर

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