रचनाकार: अशोक सतीजा सूर्यांश
कुछ दोस्तों ने मुझको,
खुदा यूं बना दिया,
दुश्मन ना कर सके जो,
वो करके दिखा दिया....
पलकों पे रखके मुझको
गाफिल बना दिया,
आगाज़ को सफर के,
मंजिल बना दिया...
कतरा मिला कहीं था,
समन्दर बता दिया,
मैं खुद की तलाश में था,
रहबर बता दिया....
यूं अर्श पे बिठाके,
जमींदोज़ कर दिया,
बनने चला था दरिया,
मुझे मौज कर दिया...
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