खान पान की वस्तुओं में भी छिपे पडे हैं औषधीय गुण
निरोगी कैसे रहें? मानव शरीर धारण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की यह एक अनिवार्य चिंता रहती हैं। आदि काल से लेकर अब तक इसके कई उपाय बताये गये हैं। इसी क्रम में जिले के आध्यात्मिक क्षेत्र के स्थापित हस्ताक्षर पं. दयाशंकर जी मिश्रा के पुत्र पं राजेन्द्र मिश्रा ने भी इस दिशा में एक प्रशंसनीय प्रयास किया हैं। वैसे तो राजेन्द्र जी का व्यक्तित्व किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। वे ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता होने के साथ साथ कर्म कांड़ के क्षेत्र में भी अपना विशेंष स्थान रखते हैं। पिछले कई वर्षों से आपके इन विषयों पर लेख ना केवल अखबारों में प्रकाशित होते रहें हैं वरन प्रमाणिक पाये जाकर लोकप्रियता भी हासिल करते रहें हैं।
कहा जाता है कि ईश्वर ने शरीर की रचना ऐसी की हैं कि वह निरोगी ही रहेगी। लेकिन हमारी आदतें, खान पान में बदपरहेजी और प्रकृति के विपरीत आचरण ही रोगों को आमंत्रित करता हैं। निरोगी कैसे रहें और रोग हो जाये तो कैसे दूर करें? इन दोनों ही विषयों पर लेखक ने अपनी पैनी नजर रखी हैं। प्रकृति की गोद में और हमारे आस पास औषधियां बिखरी पड़ीं हैं लेकिन उनकी पहचान और रोग दूर करने के लिये उपयोग की पद्धति से आम आदमी अनजान हैं। एक छोटी सी सौ पेज की किताब में गागर में सागर भरने का काम कर दिखाया है राजेन्द्र जी ने।
इस किताब के पहले चार पेजों में ही लेखक ने निरोगी कैसे रहें इसके कारगर उपाय सुझाये हैं। इनमें प्रातः काल उठना, करतल दर्शन, पाद स्पर्श, उषः पान, व्यायाम, तेल मालिश और स्नान आदि की विधि बताकर शरीर को निरोगी रखने के उपाय बताये हैं। इसके साथ ही अगले चार पेजों में निरोगी रहने के उपाय बताये गये हैं। इसके साथ ही लेखक ने अगले चरण में रोग हो जाने पर उनसे छुटकारा पाने के आसान 101 उपाय भी बतायें हैं।
इस पुस्तक के लेखक ने निरोगी रह कर शतायु होने के नुस्खे भी सुझाये हैं। इस अध्याय में यह बताया गया हैं कि रोग निरोधक क्षमता बढ़ाने एवं शरीर को स्वस्थ रखनें में अलसी,मैथी,आंवला,घृतकुमारी,हरड़,सरसों का तेल,गौ मूत्र तुलसी पत्र,नीम पत्र और छाछ का कब और कैसे प्रयोग किया जाये। इस किताब में यह भी बताया गया हैं कि आर्युवेद के अनुसार बहुत सी सब्जियां ऐसी हैं जो ना केवल रोगों को दूर भगातीं हैं वरन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती हैं। इनके जीवन पर्यंन्त या ऋतु अनुसार सेवन की विधि भी बतायी गयी हैं। इनमें शमी,लिसोड़ा,कच्ची हल्दी,बथुआ,चौलाई,मैथी,मूली,गाजर,करेला,लौकी,टमाटर एवं पालक के समयानुसार सेवन करने की विधि बता कर लाभ गिनाये गये हैं।
शरीर में होने वाले अलग अलग रोगों के लिये धरेलू औषधियों का वर्णन भी पुस्तक में सहज सरल भाषा में किया गया हैं तथा यह बताने का प्रयास किया गया हैं कि हमारे घरों में हमेशा रहने वाली खान पान की चीजें ही वक्त पड़ने पर एक औषधालय का काम कर सकतीं हैं। शास्त्रों के अनुसार किस ऋतु में किस चीज का सेवन नहीं करना चाहिये यह भी बताया गया हैं। प्राथमिक उपचार के लिये घरेलू औषघालय में अनिवार्य रूप से रखी जाने वाली दवाइयों का भी लेखक ने उल्लेख किया हैं।
योग भगाये रोग नामक अध्याय में लेखक ने एक दिन में सिर्फ 15 मिनिट योग करके स्वस्थ रहने के उपाय बताने के साथ ही मुद्रा विज्ञान और कुछ मंत्रों की मदद से निरोगी रहनें राज को भी उजागर किया हैं।
कुल मिलाकर सहज और सरल भाषा में लिखी गयी इस सौ पेज की किताब में हमें हमारे ही आस पास रहने वाली खान पान की चीजों का एक औषधि के रूप में उपयोग कर निरोगी रहने या रोग होने पर उपचार करने के सरल उपाय बताये गये हैं।
वैसे तो रोगी काया की चिकित्सा करना मानव सेवा मानी जाती थी लेकिन आज कल पैसे की अंधी दौड़ ने इसे इतना अधिक व्यवसायिक कर दिया हैं कि कई गंभीर बीमारियों के इलाज आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गये हैं। ऐसे हालातों में यह पुस्तक लाइलाज रहने के बजाय कुछ ऐसे नुस्खे तो दे रही हैं जिससे मानव मात्र की सेवा हो सके।
मैं राजेन्द्र जी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुये यह भी अपेक्षा व्यक्त करता हूॅं कि वे भविष्य में भी समाज के हित में अपने ऐसे प्रशंसनीय प्रयास सतत जारी रखें।
आशुतोष वर्मा
सिवनी
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