बड़ा शातिर नज़र है दिल के अंदर झांक लेता है,
समंदर की हदों को भी वो अक्सर आंक लेता है,
बहर से ज़िंदगी बाहर हुए हैं काफिये भी तंग,
निभाने को ग़ज़ल लेकिन वो मिसरे टांक लेता है,
दरख्तों को नहीं कोई शिकायत रहगुज़र से है,
लगाता है कलेजे से, मुसाफिर हांक लेता है,
जुबां पर लाने से हिन्दी जो है कतरा रहा देखो,
न जाने कैसे अंग्रेज़ी में इज्ज़त ढांक लेता है,
वो तिनका तिनका बिखरा था मगर टूटा नहीं “अंकुर”,
जो खाली पेट सोता है उम्मीदें फांक लेता है,
अस्तित्व "अंकुर"
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