वतन की राह चलने वालों का इतना निशां होगा,
गुज़र जाएँ जहां से भी खड़ा इक कारवां होगा,
अगर ऊंची इमारत है तो फिर तहज़ीब ऊंची हो,
फकत ईंटें बढ़ाने से नहीं कम आसमां होगा,
जो दिल की बदगुमानी है उसे नीचे ज़रा कर लो,
महज़ नज़रें चुराने से नहीं कम ये धुआं होगा,
किराए के मकानों में गुज़र मेरा न अब होगा,
जिगर इक पाक ढूंढा है वही मेरा मकां होगा,
ये मेरे दर्द-ओ-ग़म खातिर मेरी नायाब हीरे हैं,
ग़ज़ल बन दाद पाने का हुनर ऐसा कहां होगा,
चले हो राह-ए-मंज़िल तो सबक मुझसे भी कुछ ले लो,
दरख्त-ए-दिल वही होगा जो अंकुर से जवां होगा,
अस्तित्व "अंकुर"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY