Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दिल मेरा यूं भी कभी बेखयाल होता है

 

 

दिल मेरा यूं भी कभी बेखयाल होता है
आईना देख के खुद से सवाल होता है

 

हद से गुजरे तो अपना सा लगने लगता है
और बिना दर्द के जीना मुहाल होता है

 

मेरे साये भी मुझे कहते हैं हिस्सा अपना,
सब्र से मेरे भी क्या-क्या कमाल होता है,

 

मुफ़लिसी को भी मेरी, मुझपे शर्म आती है,
क्या कसर रह गयी उनको मलाल होता है,

 

दिवाली, ईद, होली सब हमें रुलाते हैं,
और कहीं हाथ में हरदम गुलाल होता है,

 

लगा है हाथ बेजुबान के इक वतन अपना,
कभी मजहब कभी मुद्दा हलाल होता है,

 

 

 

 

अस्तित्व "अंकुर"

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ