हजारों आंधियां आयें मगर दिल को खुला रखना,
तुम अपने घर को बस्ती और कस्बे को जिला रखना,
मेरी जाँ इश्क़ की कीमत नहीं आसान होती है,
मोहब्बत मैं निभा लूँगा तुम अपना दिल भला रखना,
अभी बाकी हैं सांसें और ज़िंदा इश्क़ है मेरा,
अभी मैं याद आऊँगा अभी तुम हौसला रखना,
मिटाने को मेरी यादें नहीं नफरत ये काफी है,
भुलाने की हर इक कोशिश मोहब्बत में मिला रखना,
छुपाऊँ जो तुम्हें दिल में उभरते हो ग़ज़ल बन कर,
मेरे गुस्ताख़ गीतों को मोहब्बत का सिला रखना,
ढलेगा हुस्न जब तेरा जवां तंहाइयाँ होंगी,
बड़ा फिर काम आऊँगा तुम इतनी इत्तेला रखना,
नहीं भाती है “अंकुर” को जमीनी ख्वाहिशें दिल की,
मोहब्बत या अदावत जो भी हो कुछ मंज़िला रखना,
अस्तित्व "अंकुर
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