Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जब खिज़ां आई कोई किस्सा अधूरा रह गया

 

जब खिज़ां आई कोई किस्सा अधूरा रह गया,
तितलियों का प्यार भी आधा अधूरा रह गया,


उम्र भर के साथ का वादा अधूरा रह गया,
जब हुए दो दिल जुदा क्या क्या अधूरा रह गया,


मुझको कोई गम नहीं तुझसे बिछड़ने का मगर,
तेरे मेरे बीच का हिस्सा अधूरा रह गया,


मैं मोहब्बत का भरम कैसे मिटाऊंगा भला,
शक्ल से तू भी अगर मुझ सा अधूरा रह गया,


जाने कितने लोग पूरे हो गये पाकर मुझे,
मैं तुम्हारे बिन मगर कितना अधूरा रह गया,


ख्वाब जो उम्मीद में हैं इत्तेला कर दो उन्हें,
मील का पत्थर था जो रिश्ता अधूरा रह गया,

 

 

 

अस्तित्व "अंकुर"

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ