Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मैं तुमसे दूर जाता हूँ मगर ये खींच लाती हैं

 

 

एक नज़्म:

 

 

 

मैं तुमसे दूर जाता हूँ मगर ये खींच लाती हैं,
मेरे हर दर्द की बुनियाद हैं कमबख्त तारीखें,
मैं कबसे मान बैठा हूँ मुझे हँसना नहीं आता,
मुझे मुझसे मिला देती हैं पर कमबख्त तारीखें,
किताबों में तुम्हें देखा दराज़ों में तुम्हें पाया,
क्यूँ मेरा घर बसा देती हैं ये कमबख्त तारीखें,
सितारों से कोई रिश्ता निभाया जा नहीं सकता,
तुम्हें इंसां बता देती हैं पर कमबख्त तारीखें,
खिलौनों की मैं ज़िद पीछे बहुत ही छोड़ आया हूँ,
मुझे फिर से रुला देती हैं पर कमबख्त तारीखें,

 

 

 

अस्तित्व "अंकुर"

 

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