मेरे ख़यालों में खुद को शुमार करता है,
वो कौन है जो मुझे बेकरार करता है,
नया शहर है मगर सब हैं जानते मुझको,
कोई तो है जो मेरा इश्तेहार करता है,
बड़ी मुश्किल से मैं खुद को समेट पाया था,
मुझे वो हस्ती से मेरी बेज़ार करता है,
बढ़ा चढ़ा के कह रहा है दिल की बात मगर,
ये सच है इश्क़ हमें बेशुमार करता है,
यकीन देखिये परों पे उस परिंदे का,
बिना रुके जो समंदर को पार करता है,
हो कैसे सामना अमन की बात करता है,
सामने होता है नज़रों से वार करता है,
झांक कर देखिये तो सबमें है ज़िंदा “अंकुर”
आरज़ू जीने की भी बार बार करता है,
अस्तित्व "अंकुर"
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