Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरी तन्हाइयों से आपको कैसी शिकायत है

 

मेरी तन्हाइयों से आपको कैसी शिकायत है,
इन्हें एहसास बेहतर है कि क्या मेरी ज़रूरत है,
किसी की याद का पत्थर चलाओ रूह पर मेरी,
अगर आंसू टपक जाएं समझ लेना मोहब्बत है,
खफा हों लाख दो भाई मगर मां बंट नहीं सकती,
बंटा ये मुल्क फिर कैसे? मैं कहता हूँ सियासत है,
मैं दिल को तोडने का हक़ किसी को भी नहीं देता,
मगर जो खास हैं अपने उन्हें थोडी रियायत है,
पुकारो मंदिरों में टूट्कर भगवान को अपने,
दुआ मस्ज़िद तलक जाये तो फिर पूरी इबादत है,
मिले गर दाम वाज़िब क़ातिलों को देवता लिख दें,
यहां कुछ शायरों का आजकल पेशा वकालत है,
नहीं मैं आँख का टूटा हुआ तारा फकत “अंकुर”,
कई टूटे दिलों पर आज भी मेरी हुकूमत है,

 

 

 

अस्तित्व "अंकुर"

 

 

 

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