Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हार है दर्द है और न जाने कितने अभी इम्तिहान बाकी है

 

हार है दर्द है और न जाने कितने अभी इम्तिहान बाकी है,

पर कायदा है की लड़ो तब तक जब तक तुममें जान बाकी है!

 

बहुत बार मन में आया तेरी नसीहतों पर कर लूँ यकीं पर,

थोड़ा ठहरो अभी अपने सपनों पर मुझे कुछ गुमान बाकी है!

 

जितना टूटता हूँ उतना खुद को जानता हूँ,

न जाने मेरी मुझसे कितनी पहचान बाकी है!

 

पूरे जंगल में आग है और हवा भी जोरों पर है,

पर चमत्कार है की मेरा अब तक मचान बाकी है!


अपने अपने बाड़े में घिरे भूख से बेचैन लड़ते झगड़ते,

ये सब जानवरों के लक्षण हैं कैसे कहूँ कि इंसान बाकी है!

 

आदमियत के नकाब में हर ओर आदमखोर ही मिलते हैं,

तुम फिर से मिलो कि ओठों पर एक अधूरी मुस्कान बाकी है!

 

हर रोज सुबह उठ पड़ता हूँ ये सोचकर कि कुछ हो न हो,

पर अब तलक किसी की दुआओं में मेरा नाम बाकी है!

 

'अतुल '

 

अतुल कटियार

 

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