Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिल की बुझा के आग जलाते क्यूँ हो

 

 

 
दिल की बुझा के आग जलाते क्यूँ हो
आये थे मेरे पास तो जाते क्यूँ हो !
बेहतर तो था कह देते हमसे इश्क नहीं है
मेरे ख्वाबों को मजबूरियां दिखाते क्यूँ हो !
जिस बात ने हमको छोड़ा ना कहीं का
हर वक़्त उसी बात को लाते क्यूँ हो !
मौत के रहम ने आज नींद बक्श दी
सोने दो 'मान' को अब जगाते  क्यूँ हो !!

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avenindra k.maan
 

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