जीवनानुभावों की नीव पर शब्दों का शिल्प- “लौ दर्दे-दिल की” समीक्षा :बालशौरि रेड्डी
देवी नागरानी हिन्दी जगत की जानी मानी एक कुशल कवियित्री एवं ग़ज़लकार हैं। वैसे इनका जन्म ११ मई १९४१ में कराची में हुआ, शिक्षा-दीक्षा हैदराबाद में, घर-ग्रहस्ती मुम्बई में और अब न्यू जर्सी, अमेरिका में शिक्षिका के रूप में कार्यरत है।
श्रीमती नागरानी इस प्रकार विश्व नागरिक बन गयी, परिणाम स्वरूप उनकी रचनाओं में जीवनानुभावों का वैविध है, गहनता है और विस्तार भी दर्शित है। उनकी दृष्टि में “लेखन कला एक ऐसा मधुबन है जिसमें हम शब्द बीज बोते हैं, परिश्रम के खाध्य का जुगाड़ करते हैं और सोच से सींचते हैं, तब कहीं जाकर इसमें अनेकों रंग बिरंगे सुमन निखरते और महकते हैं.” कविता के लिए यह सुंदर व्याख्या सृजन के लिए सही परिभाषा बन सकती है। सृजन के सम्बंध में भी देवी नागरानी के अपने उद्गार उनके पहले हिन्दी ग़ज़ल संग्रह ‘चरागे-दिल’ में अपनी बात रखते हुए लिखती हैं कि-“ कविता लिखना एक क्रिया है, एक अनुभूति है जो ह्रदय में पनपते हुए हर भाव के आधार पर टिकी होती है. एक सत्य यह भी है कि यह हर इन्सान की पूंजी है, शायद इसलिये कि हर बशर में एक कलाकार, एक चित्रकार, शिल्पकार एवं एक कवि छुपा हुआ होता है. किसी न किसी माध्यम द्वारा सभी अपनी भावनाएं प्रकट करते हैं, पर स्वरूप सब का अलग अलग होता है. शिल्पकार पत्थरों को तराश कर एक स्वरूप बनाता है जो उसकी कल्पना को साकार करता है, चित्रकार तूलिका पर रंगों के माध्यम से अपने सपने साकार करता है और जब एक कवि की अपनी निश्बद सोच, शब्दों का आधार लेकर बोलने लगती है तो कविता बन जाती है, चाहे वह गीत स्वरूप हो या रुबाई या गज़ल.”
श्रीमती देवी नागरानी के इससे पूर्व इस नवनीतम संग्रह के ‘चरागे-दिल” “दिल से दिल तक” शीर्षक से दो ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होकर पाठकों के दिलो दिमागों में रस-बस गये हैं। उनके ग़ज़लों का कथ्य और उन्हें पेश करने का तरीक़ा अपना एक अंदाज़ लिये हुए होता है। कवि सम्मेलनों में भी देवी नागरानी अच्छी पहचान रखती है। उनके ग़ज़लों की कुछ बानगी लीजिए —
मेरी बिसात नहीं छू लूँ आसमां को मगर कोई तो है जो बढाता है हौसला दिल का वर्तमान समाज कि विषमताओं तथा विद्रूपताओं पर देवी जी ने कटाक्ष किया है, वह उल्लेखनीय है-
जमाती है क्या धौंस उनपर वो देवी गरीबों पे दौलत की है हुक्मरानी इल्ज़ाम लगाना आसां है सच साबित करना मुश्किल है मानव मन की परिस्थियों से वह बखूबी वाक़िफ़ है और उनपर संघर्षमय रास्तों पर चलने वालों की दुश्वारियों को ध्यान में रखते हुए वे कहती हैं --- भटकता फिरेगा वो सहरा में कब तक तुम अपने दीवाने को गुलज़ार देना
ज़िंदगी की कड़वाहटों को कवियित्रि ने जिस ढंग से पेश किया है, वह तारीफ़ के क़ाबिल है---- मेरे ज़ख़्मों को काँटों से कुरेदा वो छलनी ही करे सीता कहाँ है? कवियित्री कि अनुभूतियाँ ज़िंदगी की किताब के सुफ़ए हैं, जो उनके दिल से चोट खाकर मुद्रित हुए हैं--- ज़िंदगी एक आह होती है मौत जिसकी पनाह होती है अपने सृजन के सम्बंध में देवी जी ने विषमता के तीर छोड़ देती है--- फ़िक्र क्या, बहर क्या, क्या ग़ज़ल, गीत क्या मैं तो शब्दों के मोती सजाती रही
सजाई सेज शब्दों ने मेरी सोचों के सीने पर रचा शब्दों का ये कैसा नया संसार चुटकी में उनके नवीन ग़ज़ल-संग्रह ‘लौ दर्दे-दिल की’ कवियित्री का चिंतन और समाज में हो रहे अत्याचारों तथा अन्यायों के प्रति आक्रोश दर्शा रहे हैं। आत्म के चिंतन के उदाहरण देखें: तिजारत गवाहों की जब तक सलामत क्या इंसाफ कर पाएगी ये अदालत जो हवस को ही देवी मुहब्बत कहें उनपे क्या होगा शरमों-हया असर
इसी प्रकार जीवन के सुख-दुख, आशा-निराशा, ग़म और ख़ुशी, भूख, बेरोज़गारी से जुड़े हुए भावों से उनके ग़ज़ल बहुत ही मायने रखते हैं। उनकी बानगी इन शेरों में देखें: ये भूख नहीं इक खंजर है है पेट में इक नासूर कोई चूल्हा ठंडा पड़ा है जिस घर का समझो गुरबत का है वहाँ पहरा
वियोग, श्रिंगार का यह अनोखा नमूना है इस शेर में। फिर ज़िंदगी कि तबाही का जहां देवी जी उल्लेख करती है, वहाँ उजाड़ के बाद निर्माण की आशा की किरण को भी नहीं भूलती: निकली जब घबराके मैं इक दिन ग़मों की भीड़ में इक करिशिमा सा हुआ, देखा तो खुशियाँ थीं खड़ी
ज़िंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों का संसार बड़ा व्यापक होता है। कवियित्री ने सूत्र रूप में उन अनुभवों को छोटे छोटे ग़ज़ल के शेरों में बांधने का सफल प्रयास किया है। मैं उनके उज्वल भविष्य की कामना करता हूँ और विश्वास करता हूँ कि देवी नागरानी जी एक दिन चोटी के ग़ज़लकारों में अपना शुमार पाएगी।
बालशौरि रेड्डी, अध्यक्ष: तमिलनाडू हिन्दी अकादेमी , 26 वाडी वेलुपुरम , वेस्ट महाबलम, चेन्नई 600032 ग़ज़ल संग्रह: लौ दर्दे -दिल की, शायरा: देवी नागरानी, पन्ने:100, मूल्य: 150, प्रकाशक: रचना साहित्य प्रकाशन, कालबादेवी, मुंबई-40002
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