अक्षरों के सरदार लुटेरे हो गए हैं।
लगभग सब अख़बार लुटेरे हो गए हैं।
आँखों-आँखों में ही सब कुछ ले लेते,
आँखों के दीदार लुटेरे हो गए हैं।
दरियाओं के मांझी आपस में मिल गए,
आर लुटेरे पार लुटेरे हो गए हैं।
अर्चन पूजा में भी चोरी कर लेते,
सजदे के सत्त्कार लुटेरे हो गए हैं।
क्या-क्या रंग दिखाए देख सियासत ने,
दुश्मन-रहबर-यार लुटेरे हो गए हैं।
हर दरवाज़े वाले ताले तोड़ लिए,
घर के पहरेदार लुटेरे हो गए हैं।
अभिभावक अब वृ(स्थानों में रहते,
मोह ममता के प्यार लुटेरे हो गए हैं।
पुत्रों-बहुयों की मैं बात नहीं करता,
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