Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आँखों भीतर आँसू नहीं तलवारें गिरती हैं

 

गज़ल

आँखों भीतर आँसू नहीं तलवारें गिरती हैं।

तो फिर जा कर मुश्किल से सरकारें गिरती हैं।

दुनियां को अब समझ पड़ी खेल सियासत क्या?

कैसे बारिश में निर्झर की धारें गिरती हैं?

भूचाल यदपि आता है तो आपत्ति ढाता है,

ऊँची-ऊँची छत्तों में दीवारें गिरती हैं।

उन्होंने ख़ाक तरक्की करनी है, भविष्य में,

जिस कौम में काँटों के भीतर नारें गिरती हैं।

ऊँचे- ऊँचे टावर शोभित ख़ूब तरक्की है,

तड़प-तड़प कर धरती ऊपर गुटारें गिरती हैं।

उत्तम खेती से मिलता संतुलित अच्छा चारण,

ज़हर उगंलती चूचुक भीतर धारें गिरती हैं।

देश मिरे की देखो प्रगति में खुशहाली क्या?

अपंग ज़माने के मुंह से तो लारें गिरती हैं।

सरहद् की रखवाली में है सच्ची शक्ति, भक्ति,

कितने दुश्मन मार के फिर मुटिआरें गिरती हैं।

एक क्रान्ति का तूफ़ान दोबारा उठ जाता है,

’बालम‘ त्रस्त सिरों से जब दस्तारें गिरती हैं।

बलविन्दर बालम गुरदासपुर

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)

मोः 9815625409 एडमंटन, कैनेडा


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