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बाबा श्री चंद जी की तपस्या का पवित्र स्थान

 

जन्मोत्सव पर विषेश
बाबा श्री चंद जी की तपस्या का पवित्र स्थान गुरूद्वारा श्री बारठ साहिब
भारत के विख्यात गुरूद्वारों में एक विश्व विख्यात गुरूद्वारा है ‘श्री बारठ साहिब’। यह गुरूद्वारा गुरदासपुर ;पंजाबद्ध से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर पठानकोट जी.टी. रोड से लगभग 3 किलोमीटर दूर बाईं ओर स्थित है। सड़क के ऊपर गुरूद्वारे को जाते रास्ते पर बारठ साहिब का एक बड़ा गेट बना हुआ है। सिक्ख इतिहास की साखियों में इस स्थान की बहुत ही महत्ता बताई जाती है। बताया जाता है कि इस स्थान का पूर्व नाम हरीमपुर था, जो पठानों का गांव था। बारठ साहिब श्री गुरू नानक देव जी के ननिहाल का गांव था परंतु इसकी मतत्ता उदासी साध्ु बाबा श्री चंद जी के नाम के साथ जुड़ी हुई है। बाबा श्री चंद जी श्री गुरू नानक देव जी के बड़े सुपुत्रा थे। उनके छोटे सुपुत्रा का नाम लक्ष्मीदास था।
बाबा श्री चंद जी उदासी साध्ु हुए हैं जिन्होंने शादी नहीं की। बाबा श्री चंद जी ने लगभग 62 वर्ष यहां तपस्या की। श्री गुरू अमर दास जी, श्री गुरू राम दास जी तथा पंचम पातशाी श्री गुरू अर्जुन देव जी तक समस्त गुरू श्री चंद जी से मिलने आते रहे।
जब श्री गुरू अर्जुन देव जी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी का सम्पादन कर रहे थे और स्वयं भी बाणी लिख रहे थे तब श्री रामसर अमृतसर में श्री गुरू अर्जुन देव जी सुखमणि साहिब की बाणी लिख रहे थे। लगभग 15 अष्टपदियां लिखने के बाद महापुरूष हो सकता है जो इस बाणी को आगे लिखने के लिए बल बख्शे। तब उस समय गुरू अर्जुन देव जी के हृदय में बाबा श्री चंद की का ध्यान आया तो उस समय सबसे ऊंचे तथा आध्यात्मिक प्रवृति के स्वामी बाबा श्री चंद जी ही थे। गुरू अर्जुन देव जी नंगे पांव अमृतसर से श्री बारठ साहिब आए। उस समय बाबा श्री चंद जी समाद्यि में लीन थे। उन्होंने समाद्यि से उठाना या बुलाना ठीक न समझा क्योंकि समाद्यि में लीन संत को बुलाना ठीक नहीं। यह गुरू मर्यादा के विरू( है। इसलिए गुरू अर्जुन देव जी समाद्यि वाले स्थान से लगभग एक फर्लाग की दूरी पर एक स्थान पर ठहर गए। यहां से प्रतिदिन नंगे पांव आकर समाद्यि के सामने थोड़ी दूरी पर हाथ जोड़ कर खड़े हो जाते। शाम तक इंतजार करते तथा फिर चले जाते। इस तरह 5 महीने 13 दिन प्रतिदिन प्रातः आते और शाम को बाबा श्री चंद जी को समाद्यि में देख कर वापिस चले जाते। फिर एक दिन अचानक उनकी समाद्यि खुली तो गुरू अर्जुन देव जी को पहचान कर उन्होंने कहा, आयो किध्र आए हो? यह दाढ़ी बहुत बढ़ा रखी है।य्
गुरू अर्जुन देव जी नतमस्तक हुए तथा हाथ जोड़ कर विनम्र विनय की कि महाराज यह दाढ़ी तो आपके चरण साफ करने के लिए है। तब बाबा श्री चंद जी ने प्रसन्न होकर कहा कि इसी विनम्रता के कारण ही आप गद्दी के हकदार हैं। आपकी विनम्रता महान है। फिर गुरू अर्जुन देव जी ने आदरणीय भाय से कहा कि महाराज मैं सुखमणि साहिब की बाणी लिख रहा हूं। अलग अलग लेखकों की बाणी का संपादन भी कर रहा हूं। सुखमणि साहिब की 24 अष्टपदियां लिखनी हैं परंतु 16 अष्टपदियां के बाद बाणी लिखी नहीं जा रही। तब बाबा श्री चंद जी ने आशीर्वाद दिया तो बाणी आगे लिखने में श्री गुरू अर्जुन देव जी को बल मिला। इससे पहले जब बाबा श्री चंद जी ने जिस स्थान पर तपस्या की थी वह स्थान बारठ साहिब से कुछ ही दूरी पर स्थित है। उस समय का वट वृक्ष आज भी वहां मौजूद है।
बारठ साहिब में जहां बाबा श्री चंद जी ने दातुन फैंकी थी वहां बहुत बड़ी बेरी है। वह पीपल का पेड़ भी मौजूद है जहां बाबा श्री चंद जी ने तपस्या की थी। इतिहास में वर्णित है कि जब श्री गुरू अर्जुन देव जी लोहे की गर्म चादर ;लोहद्ध पर बैठे तो उस समय उन्होंने बाबा श्री चंद जी को याद किया। बाबा श्री चंद जी ने तपस्या करते हुए भभूति से जल रही लकड़ी को निकाल कर पीपल में ठोक दिया। उध्र ज्यों ज्यों लोहे की गर्म चादर ;लोहद्ध के नीचे दुश्मन आग जलाते रहे त्यों त्यों इध्र वह पीपल ऊपर की ओर जलता चला गया। वह पीपल आज भी मौजूद है और जड़ से लेकर ऊपर तक आज भी जला हुआ साफ नजर आता है। उनको गुरू अर्जुन देव की के गर्म लोह पर बैठने का गहरा दुःख हुआ परंतु ध्ैर्य, विनम्रता, कर्मठता तथा सच्चाई पर पहरा देने की शहीदी की मिसाल की प्रसन्नता भी हुई। बताया जाता है कि ;प्राचीन साखी हैद्ध इससे थोड़ी दूर एक गांव है ‘खोभा’। उस समय यहां के लोग बाबा जी के पास आए कि इस गांव में पानी नहीं होता परंतु यहां चारों ओर खोभा ;कीचड़द्ध ही रहता था। बाबा श्री चंद जी ने वहां पानी की प्राप्ति बख्शी तथा उस गांव का नाम खोभा पड़ गया।
एक बार बाबा श्री चंद जी जंगल से गुजर रहे थे कि एक लड़का शिकार खेलते हुए मिला। उसने कई जानवर मार गिराए थे। बाबा श्री चंद जी ने उस लड़के को कहा कि भाई तुम इन जानवरों को क्यों मार रहे हो? यह पाप है। उस लड़के ने कहना न माना तथा वह शिकार खेल कर घर चला गया। उसके पेट में दर्द उठा। वह मृत्यु शैÕया पर चला गया। जब उस लड़के के पिता को शिकार वाली बात का पता चला कि बाबा श्री चंद जी के साथ उस लड़के की बातचीत हुई है। वह उस क्षेत्रा का पठान था बारे खां। वह बाबा श्री चंद जी को मिला। हाथ जोड़ कर पुत्रा के स्वस्थ होने की प्रार्थना की और मुआफी मांगी। तब बाबा श्री चंद जी ने उसके पुत्रा को जीवन दान दिया तथा उसे इलाका छोड़ने को कहा। वह पठान इलाका छोड़ कर चला गया। उसके नाम पर पठानकोट शहर का नाम प्रचलित हुआ।
जिस नाथ की श्री गुरू नानक देव जी के साथ बातचीत हुई थी उस चरपट नाथ ने बाबा श्री चंद जी की शक्ति को आजमाने के लिए एक आम भेजा। उसका चेला आम लेकर पहुंचा तो बाबा श्री चंद जी ने कहा कि भाई हम यहां तीन हैं, तुम आम केवल एक लेकर आए हो। वह आम लेकर वापिस चला गया। उस समय बाबा श्री चंद जी के समीप श्री ध्र्म चंद ;उनका भांजाद्ध तथा बाबा कमलिया जी बैठे थे।
उस नाथ ने चेले को फिर एक आम देकर भेजते हुए कहा कि उनसे कहो कि नानक ने तो एक तिल कई लोगों में बांट दिया था तुम एक आम तीनों में नहीं बांट सकते। चेले ने ऐसे ही बाबा जी को आकर कहा। वह सुन कर हंस पड़े और आम को निचोड़ दिया। जहां जहां आम के कतरे पड़े वहां आज भी आम के वृक्ष मौजूद हैं।
बाबा श्री चंद जी में असीम शक्ति थी तथा वह आध्यात्मिक शक्ति की सभी सीढ़ियां चढ़ चुके थे जिस कारण उन्हों में एकाग्रता की गहराई समाद्यि का रूप ले लेती थी।
118 वर्ष की आयु के बाद वह यात्रा पर निकल पड़े। वह यहां से ममून गए तथा वहां के लोगों की मज़बूरी को देख कर पहाड़ी से जल निकाला। उस पहाड़ी से आज भी जल निकलता है। उसके पश्चात वह चम्बा की ओर चले गए। उनके साथ संगत भी थी। उन्होंने संगत को वापिस भेज दिया तथा आप फिर कहां गए मालूम नहीं।
उनके पश्चात बाबा ध्र्म चंद जी ;जो विवाहित थेद्ध इस स्थान के अनुयायी बने। इनका वंश आज भी कीरतपुर में चल रहा है। ;बाबा श्री चंद जी की अनेक साखियां मिलती हैं जो यहां विस्तार से नहीं दी जा सकती।द्ध
बाबा श्री चंद जी उदासियों के प्रथम आचार्य हुए हैं। आजकल भी पट्टðी तथा सिरसा से उदासी साध्ु प्रत्येक वर्ष पांच दिनों के लिए श्री बारठ साहिब आकर श्लोक जाप करते हैं।
आजकल इस स्थान की बहुत महत्ता है। देश-विदेश से श्र(ालु इस स्थान से आशीर्वाद लेने आते हैं तथा अपनी मन्नतें पूरी होने पर माथा टेकने आते हैं। सक्रांति के अवसर पर भारी माात्रा में श्र(ालुगण माथा टेकने आते हैं। कृषि क्षेत्रा होने के कारण यहां कई प्रकार के व्यंजन तथा फसलें चढ़ावे के रूप में चढ़ाई जाती हैं। यहां दिन रात पाठ चलते रहते हैं। बाबा श्री चंद जी की ओर से बनवाई गई बौली में लोग स्नान करके सुख की अनुभूति करते हैं। अब गुरूद्वारे की भव्य इमारत बनी हुई है। श्र(ालुओं के लिए समस्त सुविधएं उपलब्ध् हैं।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध
मोः 98156-25409




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