Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बाबा सुथरे -रु39यााह जी

 

महान संत, त्यागी, ब्रह्मचारी, समाज सुधरक बाबा सुथरे -रु39यााह जी
महान संत, त्यागी, ब्रह्मचारी, समाज सुधरक कर्मठ तथा अनेक गुणों
के स्वामी थे बाबा सुथरे -रु39यााह जी। वह सारी आयु बचपन से लेकर अंत्तिमसमय तक गुरूघर के साथ जुड़े रहे। सौम्यता और -रु39याान्ति उनकेमुखमण्डल पर सदैव -हजयलकती रहती थी। बाबा सुथरे -रु39यााह जी द्वारा जो
आध्यात्मिक विकास, करामतें, औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं के जनेऊ न
तोड़ने का वचन आदि जो सद्गुण कार्य किए वे सब सराहनीय हैं और
समाज के लिए मार्गद-रु39र्यान का कार्य करते रहेंगे।
बाबा सुथरे -रु39यााह जी का जन्म गाँव बहरामपुर, ज़िला गुरदासपुर ;पंजाबद्ध
में 1583 ई. ;1640 विक्रमीद्ध को श्री बिहारी लाल नंदा जी एवं माता
य-रु39यादेवी के गर्भ से श्रावण मास की पूर्णिमा में हुआ। जन्म से ही इस
बालक के मुख में पूरे दांत व चेहरे पर दा-सजय़ी थी। पण्डितों एवं
ज्योति-िुनवजयायों ने विचार कर इस अद्भुत एवं लोक कल्याणार्थ जन्मे
बालक को पूरा गाँव एवं परिवार के लिए अ-रु39याुभ बतलाया जिससे कि बालक के प्रति
किसी को मोह उत्पन्न न हो।
परिवार के कुछ लोग इस बालक को रावी नदी के किनारे -हजयाड़ियों
में छोड़ आए। अतः संयोगव-रु39या उसी रास्ते से श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब
जी अपनी संत मण्डली सहित प्रभु नाम का उच्चारण करते हुए जा रहे थे।
उन्हें बालक का रूदन सुनाई दिया। उन्होंने रूक कर बच्चे को -सजयूं-सजय
लाने के लिए अपने सेवक भाई भगतु को आदे-रु39या दिया जो कि उस समय गुरू
जी के पीछे-ंउचयपीछे चल रहा था। गुरू आज्ञानुसार भाई भगतु जी बालक
को उठा लाए जोकि उस समय ध्ूल से सनां हुआ था। जब बालक को गुरू
महाराज के सामने पे-रु39या किया गया तो महाराज जी ने बालक को गोद में
लेने के लिए आगे हाथ बड़ा दिए। मण्डली के सेवकों ने श्री गुरू
हरगोबिन्द साहिज जी से कहा, महाराज, देखिए यह बालक कितना कुथरा ;कुरूपद्ध
है।य् इस पर उन्हों ने मुस्कुराते हुए कहा, अगर यह कुथरा है तो इसे
इध्र लाओ, हम इसे ‘सुथरा’ बनाएंगे।य् गुरू महाराज ने बालक को
दोनों हाथों से उठा लिया। सेवकों से कपड़ा लेकर उसके -रु39यारीर
को साफ़ किया। एक सुन्दर वस्त्रा पहना दिया और कहा, अब तो सुथरा हुआ
कि नहीं?य् जल के किनारे मिलने से गुरू महाराज ने बालक का नाम ‘जलज्योति
-रु39यााह’ रख दिया। वे इसे अपने साथ ही ले आए और इसे पुत्रावत पालने लगे।
गुरू जी ने अच्छे लालन पालन से सुथरे को ब-सजय़ा किया। अपने
बच्चों की तरह पालन किया। बाबा सुथरे -रु39यााह जी को कहीं भी
आने-ंउचयजाने की पाबंदी नहीं थी। दरबार में चलती विचारें,
महापुरू-ुनवजयाों की -िरु39याक्षाओं, कीर्तन मर्यादा और -रु39याब्द गायन ने उन पर

गहरा प्रभाव छोड़ा। सुथरा जी का स्वभाव विनोदमई था। गू-सजय़
ज्ञान की बातें वह अपने विनोदपरक स्वभाव से ही कह देते थे। गुरू
महाराज का पुत्रा होने के नाते उन्हें वह सारी निध्यिां मिलीं जिससे वह
सांसरिक जीवन को सुविध और -रु39याान के साथ बिता सके। गुरू महाराज जी में
जो गुण और -रु39याक्तियां थी वह एक बेटा होने के नाते सुथरा जी में
भी सन्निहित हुई। ऐसा कोई अध्किार -रु39यो-ुनवजया नहीं था जो गुरू महाराज
ने उन्हें न दिया हो।
बाबा सुथरा जी दरबार में लंगर, प्रसाद, कीर्तन, गुरूबाणी व्याख्यान
को हृदय से करते, एकाग्रता से करते और सब को सच्चे हृदय पालना का आदे-रु39या
देते।
बाबा सुथरे -रु39यााह जी बचपन से ही विनोदप्रिय थे। वे अपने ध्र्म पिता
श्री गुरू हरगोबिन्द जी से बहुत प्यार करते थे। बाबा सुथरे -रु39यााह जी ने सारी
आयु गुरूघर की सेवा में विता दी। हमे-रु39याा दूसरों का उपकार किया, जहां
जहां बुराई देखी वहीं पर ‘हरदम नानक -रु39यााह ध्र्म का बेड़ा बन्ने ला’
कह कर पहुंच जाते। कुरीतियों का ना-रु39या किया। अत्याचारों का विरोध्
किया। दूर-ंउचयदूर जाकर सब को नानक नाम का उपदे-रु39या देकर कृतार्थ किया।
अलमस्त फ़कीर थे।
औरंगजेब से एक मुलाकार में उन्हों ने कहा, ऐ बाद-रु39यााह, अगर
तू मु-हजये कुछ देना ही चाहता है तो तू मु-हजये वचन दे कि जो प्रतिज्ञा
सवा मन जनेऊ जलाने की तूने की है उसे छोड़ देगा।य् औरंगजेब ने
इसे स्वीकार कर लिया था। बाद-रु39यााह ने प्रसन्न होकर बाबा सुथरे -रु39यााह जी
की मुठ्ठी में एक रूपया रख दिया। औरंगजेब का एक पट्टा लिखा आज भी
मिलता है। बाबा सुथरे -रु39यााह सम्प्रदाय के संत आज भी जिस हट्टी पर जाते
हैं उन्हें यह -िरु39याक्षा अव-रु39यय मिलती है।
बाबा सुथरा जी जहांगीर बाद-रु39यााह और उनकी पत्नी नूरजहां से
भी मिले और उनको मानवता का संदे-रु39या दिया। बाबा सुथरे -रु39यााह जी के
पहरावे को देखकर हिन्दू व मुसलमान असमंजस में पड़ जाते थे। वे सिर पर
अक्सर लखनवी टोपी, कुर्ता व धेतो या लूंगी पहनते थे। उनके कन्ध्े
पर अंगोछ ;परनाद्ध रहता, चेहरे पर बड़ी हुई दा-सजय़ी और अपने गुरू के
दरबार में हमे-रु39याा पगड़ी पहनते थे। बाबा सुथरा जी को सब ध्र्मों के
लोग चाहते थे, प्यार सत्कार करते थे।
बाबा सुथरा जी को बाबा श्री चन्द्र जी ;गुरू नानक देव जी के पुत्राद्ध
ने छः बख्-रु39याी-रु39या में से पहली बख्-रु39याी-रु39या बाबा सुथरे -रु39यााह जी को दी। सेली
टोपी प्रदान की, भे-ुनवजया संबंध्ी सब गुप्त भेद बताकर ट्ठ(ि-ंउचयसि(, वचन सत्यता
और अपने कार्यक्रम में सफ़ल होने का आ-रु39र्याीवाद प्रदान किया। यहीं से

‘सुथरे -रु39यााह सम्प्रदाय’ का प्रादुर्भाव हुआ। बाबा सुथरा जी ने सारे
भारत की यात्रा की और अन्याय, अत्याचार, कुरीतियों, अंध्-ंउचयवि-रु39यवासों एवं
पाखण्डों को दूर किया।
बाबा सुथरा जी हाथों में कड़े पहन कर दो डण्डों को बजा
कर व गा कर लोगों को परमात्मा की भक्ति का ज्ञान देते थे। डण्डे
बजा कर मस्ती में -हजयूमते थे। बाबा सुथरे -रु39यााह जी ने बाबा रज्जाह -रु39यााह
को अपना -िरु39या-ुनवजयय बनाया। बाबा सुथरे -रु39यााह जी ने उन्हें महन्त की उपाध्
िदी। बाबा सुथरे -रु39यााह जी ने अपने नाम से एक ध्र्म-रु39यााला अमृतसर ;पंजाबद्ध में
स्थापित की। एक ध्र्म-रु39यााला -रु39यााह लाहौर -रु39याालमी दरवाज़े के अन्दर कायम की
और एक ध्र्म-रु39यााला पे-रु39याावर में कायम की।
ज्योति का स्वरूप ज्योतिपुंज सुथरा सम्प्रदाय गुरू प्रणाली के प्रथम संत
श्री बाबा जलज्योति -रु39यााह ;सुथरा जीद्ध महाराज हैं। बाबा रज्जाल -रु39यााह तथा
बाबा निहाल -रु39यााह जी ने योग द्वारा इस ज्योति को आगे ब-सजय़ाया। कई
यात्राएं करते हुए सुथरा -रु39यााह जी गुरदासपुर से हो-िरु39यायारपुर ;पंजाबद्ध आ गए।
वहां से वे माँ के द-रु39र्यान हेतु, माता चिन्त पूर्णी गए। कुछ दिन वहां रह
कर ज्वाला जी, कांगड़ा जी होते हुए चामुण्डा देवी जा पहुंचे। फिर
नैना देवी मन्दिर गए, वहां तपस्या भी की।
बाबा सुथरा -रु39यााह जी की सम्प्रदाय के लाखों स्थान थे।
आहिस्ता-ंउचयआहिस्ता परोक्ष होते गए, परन्तु वर्तमान में सब से दीर्घ गद्दी
यमुना नगर बाज़ार दिल्ल में है, यहां महंत श्री विवेक -रु39यााह जी गद्दीनसीन
हैं। इसके अतिरिक्त, गुरदासपुर, अमृतसर, जालंध्र, नकोदर, माछीवाड़ा,
जगरावां, ईलावल पुर, कोटकपूरा, आनंदपुर साहिब, गाँव मूले पुर
;सरहिंदद्ध, लाहौर, पि-रु39याावर, गाँव छतरी कांगड़ा ;हि.प्र.द्ध, ऊने, खन्ना,
ज्वाला जी, जगाध्री, हरिद्वार, गया जी बिहार, नांदेड़ साहिब आदि स्थानों पर
सेवा हो रही है। बाबा सुथरे -रु39यााह जी की बाणी भी मिलती है,
कवितायों के रूप में।
बाबा सुथरा -रु39यााह जी के ब्रह्मलीन होने की सही तिथि नहीं मिलती,
परन्तु वि-रु39यवास मत है कि वे सौ व-ुनवजर्या से ऊपर जीवत रहे। बाबा सुथरा -रु39यााह जी
ने गुरू नानक देव जी के मानवता के मार्ग पर चल कर सच्चे आदे-रु39याों का
पालन किया और संसार को सही रास्ता दिखाया। उनकी बर्सी मेले के रूप में
15 व 16 दिसंबर को ध्ूमधम व श्र(ाभाव से मनाई जाती है।
बड़े दुख से कहना पड़ रहा है कि बहरामपुर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध में
यहां बाब सुथरा -रु39यााह जी का जन्म हुआ, उस स्थान बहरामपुर में सुथरा
-रु39यााह जी की समाध् िके आस-ंउचयपास गंदगी के -सजय़ेर, उपलों के -सजय़ेर लगा हुए
हैं तथा लोग वहां प-रु39याु बांध्ते हैं। वह कमरा जिसमें वह रहते थे,

गंदगी से भरा हुआ है। कोई सफ़ाई नहीं। कूड़ा-ंउचयकर्कट तथा
प्राचीन ट्रंकों तथा चित्रों पर ध्ूल ही ध्ूल जमीं हुई है। उनके
दो डण्डे जिन्हें वो बजाते थो तथा एक अलगोजा ध्से पिटे रूप में
मिलते हैं। सुथरा जी के स्थान के नाम तीन एकड़ तथा कनाल ज़मीन
है, जो बेकार पड़ी है। उनका पवित्रा समाध् िस्थान बुरे हालों में
है। क्या पुरातत्तव विभाग या -रु39यारोमणि गुरूद्वारा प्रबंध्क कमेटी इस महान
गुरू-ंउचयसेवक बाबा सुथरा -रु39यााह जी के पवित्रा स्थान को दुनिया के नक्-रु39यो
में ला सकते हैं? इस स्थान को नएं सिरे से उच्च स्थान बना सकते हैं?
इस पूज्य स्थान को गंदगी आदि से बचाया जाए। उनको यही सच्ची श्र(ाजलि
है।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध
मो.ः 98156-ंउचय25409

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