मुश्किल रदीफ़ की ग़ज़ल
ग़ज़ल
बारिश में लघु सी एक इमारत है छतरी।
चलती फिरती रंग बरंगी छत है छतरी।
सेवक बन कर पैरों में गुलामी नहीं करती,
अलबत्ता सिरों पर करती हकूमत है छतरी।
गर्मी या बारिश जितना चाहे कहर करे,
परंतु सहनशक्ति है, एक ज़ुर्रत है छतरी।
संवेदन भरपूर सुकून दवे तन मन को,
ग्रीष्म ट्टतु में भी करती मोहब्बत है छरती।
काला सूट, दुपट्टðा काला, काली ऐनक,
सूखऱ् गुलाबी हाथों में हसरत है छतरी।
जगह-जगह से टूटी फूटी गंठीली सी,
निधर््न की झुग्गी जैसी गुरबत है छतरी।
रूईं की भांति छोटी-छोटी बर्फ पड़े जब,
दूर किसी पर्बत ऊपर क्यामत है छतरी।
तेज़ हवा में हाथ से उड़ कर, हाथ न आए,
बच्चों में करती ख़ूब शरारत है छतरी।
भगवन का पर्याय बन कर गुम्मट के ऊपर,
सारे मन्दिर की करती हिफ़ाज़त है छतरी।
सौंदर्यता को चार चांद लगा देती है,
जिनकी फैशन एवं उम्दा आदत है छतरी।
विज्ञान, ज्ञान, ध्यान, चिंतन की उन्नति,
सारा भूमण्डलीकरण जगत है छतरी।
सुन्दर दिलकश पक्षी इस पर आकर बैठें,
आंनदित दोस्त अनुपम पर्बत है छतरी।
सरगोशी, शोखी, निजता, निश्छल मदहोशी,
ऐकांत में अल्हड़ उम्र इबादत है छतरी।
राही के लिए जन्नत का आभास बने,
पेड़ों की छांवदार इबारत है छतरी।
अपनी-अपनी किस्मत का यह सरमाया है,
इध्र निधर््न एवं उध्र वज़ारत है छतरी।
इसकी शैली से ‘गर कोई खिलवाड़ करे,
खुलती नहीं तो फिर करती बगावत है छतरी।
तीक्ष्ण गर्मी भीतर या टिप-टिप बारिश में,
साथ रहे तो फिर पक्की दोसत है छतरी।
राज सिंहासन की शान-ए-शौकत बन जाती,
कुर्सी मिल जाए, करती सियासत है छतरी।
‘बालम’ विभिन्न तत्त्व से मिल कर संपूर्ण,
संहिता की प्रतिबिम्ब सदाकत है छतरी।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध
मोः 98156-25409
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