भारत का कम्यूनिटि रिज़र्व ;प्राकृतिक स्त्रोतद्ध केशोपुर छम्भभारत का एकाकी कम्यूनिटि रिज़र्व ;प्राकृतिक स्त्रोतद्ध है केशोपुर छम्भ, बहरामपुर रोड, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध। यह अद्वितीय तथा आकर्षक स्थान गुरदासपुर से लगभगे पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह स्थान वन्य जंगली जीव ;गुरदासपुर-पठानकोटद्ध पंजाब के अंर्तगत आता है।कोशोपुर छम्भ में प्रतयेक वर्ष नवम्बर से मार्च तक हज़ारों ही प्रजातियों के पक्षी अलग-अलग प्रांतों तथा विदेशों से हज़ारों मील लम्बा सफ़र तय करके इस स्थान पर आकर इस स्थान की सुषमा को चार चांद लगा देते हैं।
इस वर्ष 25000 के करीब पक्षी इस स्थान पर तशरीफ लाए हैं। प्रवासी पक्षियों का यहां यह मनोरंजन स्थान है वहां पछी यहां पहुंच कर मौसम परिवर्तन का भी खूब लुतफ़ ;नज़ाराद्ध उठाते हैं। पक्षियों की गणना में प्रवासी पक्षियों की प्रमुख्य जातियों में कामन टील 3601, गैलवाड़ 3032, नार्दरम शावर्कर 2796, पिनटेल 2528, कूटस 2465 पाए गए हैं। इसके अतिरिक्त और पक्षियों में वलीनेबड, स्र्टाक, वैटेल स्टार्क, रैड नैबड ईबज़, सारस कारेन, नार्दरन लैप विंग बी बड़ी मात्रा में पाए गए हैं। वूली नेकसड स्र्टारक, विरला-विरला पक्षी है जिसकी जनसंख्या अनवरत कम होती जा रही है। विभाग की ओर स जंगली जीव सुरक्षा के अन्य प्राजैक्ट चलाए गए हैं।
प्रत्येक वर्ष प्रवासी पक्षियों की संख्या बढ़ने के कारण हैं पक्षी विहार में चलाया जा रहा ईको टूरिज़्म प्राजैक्ट, इसके अंर्तगत एक सौ एकड़ में जड़ी-बूटी की सफाई की गई है। इससे पक्षियों के लिए पानी का क्षेत्रा बढ़ गया है। इस में 8 किलोमीटर सड़कें बनाई गई हैं।
केशोपुर छम्भ का क्षेत्रा दीर्घ प्राकृतिक तालावों वाला, ऊंची, दरम्यानी तथा लघु जड़ी-बुटियों सहित तरह-तरह के घास वाला, भव्य, मर्मस्पर्शी, मनोरंजक परक, प्राकृति की गोद में बसा अदभुत क्षेत्रा है। प्राकृतिक तालाबों नुमां झीलों की भरमार, प्राकृतिक, लघु वन्य क्षेत्रा, कीट पतंगों का रैन-बसेरा तथा कई प्रकार के जानवर भी यहां पनाह लेते हं। कुछ पक्षी अक्तूबर माह से लकर मार्च माह तक पानी में ही तैरते रहते हैं। दीर्घ तालाबों के छोरों पर जाकर आपस में कलोल करते, उठखेलियां करतेेे, मस्ति मारतेेेेेेे, विभिन्न मनमोहक आवाज़ें ;ध्वनियांद्ध निकाल कर प्राकृति की मांग में भव्यता का सिंदूर बिखेरते। तरह-तरह के पक्षियों की ध्वनियों का तलिस्मय मिश्रण एक सम्मोहन जैसा नज़ारा देता है।
इस स्थान से कुछ किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा पड़ती है। इस क्षेत्रा की ओर 40 किस्म के वृक्ष, 32 किस्म की जड़ी-बूटियां तथा अनेक प्रकार की फसलें होती हैं। बहरामपुर क्षेत्रा की बासमति आज भी मशहूर है।
इस क्षेत्रा के प्राकृतिक तालाबों में विशेष तौर पर मघ, नील सर, मुरगाबी, कूट, ब्लैक कूट, सारस करेन, सैरों, कूंज, शिकरा, जल्कुकड़ी तथा तरह-तरह की चिड़ियां, मुर्गे, बतखें, कठफोड़वा, बलू क्राऊंड, राम चिरोईया इत्यादि ज़्यादा मात्रा में पाए जाते हैं।
विदेशी पक्षी चीन, बुलगारिया, रूस, साएबेरीया, कज़ाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, नेपाल आदि के अतिरिक्त चम्बा-डल्हौजी ;हिमाचलद्ध के क्षेत्रा से भी आते हैं। सबसे मर्मस्पर्शी तथा सुन्दर पक्षी कूंज ;सारसद्ध तथा मुर्गाबियां पाई जाती हैं। कूंजें-मुर्गाबी से बहुत बड़ी होती हैं तथा बहुत उच्चाई पर कतारें ;पंक्तियांद्ध बनाकर उड़ती हैं। यह अंग्रेजी के शब्द ;टद्ध की शक्ल में उड़ती हुई बहुत अच्छी लगती हैं। कूंज में नर कम तथा मादा ज़्यादा होती हैं। इनका नेतृत्व नर करता है। वे कई-कई घण्टे आसमान में उड़ने की क्षमता रखती है। कूंजे ;सारसद्ध अपने अण्डे देकर फिर आ जाती हैं और लगभग छह माह ईध्र रह कर फिर उध्र जाकर बच्चे निकालती हैं।
मनुष्य की तरह ही पशु-पक्षी तथ जीव-जंतू भी एक दूसरे के ऊपर निर्भर रहते हैं। बिना आपसी सहयोग के इनका जीवन संभव ही नहीं होता है। अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी, जीव-जंतू कुछ पाने के लिए आपस में संबंध स्थापित करते हैं। इस तरह वह कई कार्यों में एक दूसरे ऊपर निर्भर रहते हैं।
पक्षियों का प्राकृतिक वातावरण में जीना, प्राकृतिक भोजन के साध्नों में रहना, मनोरंजन मूल्य ढूढना, रैन-बसेरे के लिए अपनी जिजीविषा ;जीवनशैलीद्ध के अनुकूल स्थान ढूढना, पक्षियों के स्वभाव में शामिल होता है। पुश्तैनी जीवन में अपनी जिजीविया का अस्तित्व संभालते हैं।
केशोपुर छम्भ में देसी-विदेशी तथा प्रवासी पक्षी मिलकर कई मील लम्बा भीड़-भड़क्के वाला प्राकृतिक मेला अस्तित्व में लेकर वातावरण में प्यार, महोब्बत, अनुशासन, लय तथा संहिता का संदेश देते प्रतीत होते हैं।
केशोपुर छम्भ का प्राकृतिक स्त्रोत से भरपूर क्षेत्रा लगभग 850 एकड़ में फैला हुआ, वातावरण को शु(ता प्रदान करता है। यह समस्त भूमि अलग-अलग पंचायतों की है जैसे मिआनी गांव की 400 एकड़, गांव डाला की 150 एकड़, केशोपुर की 136 एकड़, मटमा की 51 एकड़, मगरमूदियां की 111 एकड़ भूमि शामिल है।
यह क्षेेत्रा गैसों तथा प्रदूषण को कम करता है। यह क्षेत्रा गैसों को अपने अन्दर जज़्ब करने की अदभुत विज्ञानक क्रिया करके विशेष स्थान रखता है।किसी समय यह स्थान महाराजा रणजीत सिंह की शिकारगाह भी रहा है। दिल्ली से लाहौर जाने के लिए ज़िला गुरदासपुर के रास्ते होते हुए बहरामपुर छम्भ के क्षेेेेेेत्रा से गुजर कर ही लाहौर जाया जाता था।
इस महकमें के अध्किारी सुखदेव राज तथा नवनीत कौर ने बताया कि इस स्थान को देखने के लिए सैलानियों की संख्या लगातार बढ़ती हुई को देखते हुए पंजाब टूरिज़्म हैरीटेज़ बोर्ड तथा पंजाब वन्य तथा जंगली जीव पंजाब के संयुक्त उ(म की कोशिश से एशियन डिव्लपमैंट बैंक की आर्थिक सहायता से केशोपुर छम्भ को भव्य, सुविधपूर्वक, मनोरंजक तथा मर्मस्पर्शी बनाने के लिए बड़े आकार की ईमारतें तथा साफ-स्वच्छ कमरे, कई प्रकार के वृक्ष लगाए तथा और अन्य सुविधएं मुहैया करवाई गई है। तां जो सैलानियों की संख्या और बढ़ सके तथा यह पिछड़ा क्षेत्रा आर्थिक तथा प्रतिष्ठिता के तौर पर और मज़बूत हो सके।
नव-ईमारतें तथा नव-सुविधयों के लिए 2013 से 2016 तक उचित्य निर्माण कार्य किए गए हैं, जिसमें इन्टरपरेटेशन सैंटर, सैमीनार हाल, कैफटिरिया ;कंटीनद्ध, पारकिंग एरिया, पख़ाना ब्लाक ;टायलट ब्लाकद्ध, एग्ज़िबिशन होम, वाच टाॅवर, हाऊस प्वाईंट, नेचूरल टेल आदि का निर्माण भविष्य के लिए उन्नति तथा आध्ुनिकता का पर्यायवाची होगा।
इस स्थान में देश-विदेश के सैलानियों के अतिरिक्त स्कूल-काॅलेजों के विद्यार्थी तथा अध्यापक भी हज़ारों की संख्या में आकर इस स्थान की महत्ता को चार चांद लगा देते हैं। यहां सैलानी फोटोग्राफी करने का आनंद उठाते ही हैं अलग-अलग पक्षियों की सामूहिक लघु-उडारियां ;परवाज़द्ध, तालाबों में मछलियों के मिश्रित कलोल, अठखेलियां तथा उनके द्वारा की जाती प्राकृतिक जिमनास्टिक क्रियाओं का भी लुतफ़ उठाते हैं।
यहां कमल ककड़ी तथा संघाड़े की फसल तथा मछली पालन की भरपूर जानकारी मिलती है क्योंकि अध्किाध्कि लोगों को मालूम नहीं है कि संघाड़े की फसल ज़मीन में नहीं होती बल्कि पानी की सत्ता के बीच होती है। संघाड़े की जड़ ज़मीन में नहीं होती बल्कि पानी में ही होती है।
इसी तरह कमल ककड़ी की फसल भी एक अदभुत शैली से तैयार की जाती है। यह फसल कमल के फूलों की जड़ से पैदा होती है। कमल की जड़ें कीचड़ के भीतर होती हैं जिनको गैंती ;कहीद्ध के साथ गîक्के खोदकर भूमि की तह से निकाला जाता है। कमल ककड़ी खास करके जम्मू-कश्मीर में ज़्यादा भेजी जाती है क्योंकि यह बहुत गर्म होती है।
इस पिछड़े क्षेत्रा के गांवों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य हुए हैं वे हैं रोज़गार मुहैया करवाना। छम्भ ;प्राकृतिक स्त्रोतद्ध की अपेक्षा अनेक ही ग्रामीण लोगों के स्वयं-रोज़गार मिला है। सरकार की सैल्फ हैल्प गरूप योजना एक कामयाब योजना प्रमाणित हुई है।
छम्भ में प्राकृतिक वातारण में पैदा होती जड़ी-बूटी ‘जल कुम्भी’ से कई तरह की वस्तुएं तैयार करने की नईं योजना का सही प्रशिक्षण दिया गया है। इस क्षेत्रा के गांवों के लगभग 10 पुरूष-महिलायों को आसाम से 15 दिन की ट्रेनिंग ;प्रशिक्षणद्ध दिलाया गया है। जल कुम्भी वाली बूटी को एक छोटी-सी मशीन द्वारा स्वच्छ साफ करके उसके परस, बटूए, फाईल कवर, चप्पलें आदि तैयार किए जाते हैं। यह एक सफल तथा कामयाब तज़ुर्बा हुआ है।
इसी तरह ही ‘काई बूटी’ से हाथों के साथ प्राचीन रीति रिवाज शैली शिल्प में चंगेर, छिक्कू, टोकरियां आदि तैयार की जाती हैं।
काई बूटी से तैयार की हुई वस्तुयों का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केन्द्र गुरदासपुर ;पंजाबद्ध की और से दिया जाता है। इस क्षेत्रा में लगभग 15 सैल्फ हैल्प गरूप अनवरत परिश्रमपूर्वक तथा सफलतापूर्वक कार्य करते आ रहे हैं। एक गुरूप में लगभग 10 नर-नारी कार्य करते हैं।
इन गरूप में फूड प्रोसैसिंग जैसे मुरब्बा, अचार, पापड़, बड़ियां, सेवीं, फूलबड़ियां, सूजी के लडडू, टेलरिंग ;सिलाई-कढ़ाईद्ध, चूचों के फार्म, कपड़े ;परिधनद्ध धेने का सरफ, डेअरी फार्म, ऊन के कार्य आदि ध्ंध्े सफलतापूर्वक विध् िसे किए जा रहे हैं। इन ध्ंधें से इस पिछड़े तथा सरहद्ी क्षेत्रा के निधर््न बेरोज़गार लोगों को स्वयं-रोज़गार मिलने से उनका आर्थिक जीवन स्तर ऊंचा तथा खुशहाल हुआ है।
सैल्फ हैल्प गरूप की ओर से तैयार की हुई वस्तुयों की ख़रीद के लिए सरकार ने वन्य मंडल पठानकोट ;पंजाबद्ध की ओर से डल्हौजी रोड पर एक दुकान खोल रखी है, यहां वस्तुयों की सेल होती है।
स्काटलैंड से आई एक विशेष विज्ञानी महिला ‘बैरी’ ने कुछ नवयुवकों को विशेष करके राकेश कुमार को नेचर गाईड की विध् िपूर्वक बोलचाल की शैली, ज्ञानपूर्वक तथा शारीरक भाषा शैली से समझाने की तकनीक देकर उचित्त्य उपराला किया है।
किसान मनमोहन सिंह ने बताया कि छम्भ के क्षेत्रा की ओर पक्षियों की आमद की संख्या इस करके कम हुई है कि खेतों तथा मछली के तालाबों के आस-पास टेपरिकार्डर की टेप निशानियों के तौर पर दूर-दूर पर बांस के साथ तारों की भांति बांध्ी जाती हैं इस टेप की झलकार से लिश्कोर से डर कर पक्षी नहीं आते। नदीन नाशिक दवाईयों की बहुताद करके भी पक्षी कम आते हैं। मघ पक्षी का ज़्यादा शिकार होता है क्योंकि इसका मांस खाया जाता है।
खेतों में दवाईयों की भरमार करके तथा पोलीफीन के लिफाफ़ों के कचरे करके कई प्राचीन महत्त्वपूर्ण जानवर, पक्षी, कीट-पतंगे खत्म होते जा रहे हैं। खास करके चीज़ वहूटी ;लाल रंग का कीटद्ध, जुगनूं, चिड़ियां तथा गि(े ;सुरखाबद्ध आदि। जुगनूं तो इस क्षेत्रा में लगभग खत्म ही हो गए हैं। सबंध्ति महकमे को चाहिए कि कीट पतंगों के अतिरिक्त पक्षियों की सही देखभाल संभाल तथा उनका दाना-भोजन का उचित प्रबंध् और करें तां जो प्राकृतिक माहौल में भव्यता तथा सार्थकता बनी रहे।
इस क्षेत्रा के गांवों में पेईंग गैस्ट हाऊस भी मिल जाते हैं, क्योंकि विदेशी लोक पेईंग गैस्ट हाऊस ;ग्रामीण तथा आंचलिक क्षेत्राद्ध में रहना ज़्यादा पसंद करते हैं। भविष्य में यह स्थान अपनी भव्यता तथा एकाकी प्रतिष्ठिता के ज़रीए देश-विदेश तक अपनी पहचान छोड़ेगा। अध्कि जानकारी के लिए मो. नः 94788-15900 पर समपर्क किया जा सकता है।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध मो.ः 98156-25409
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