Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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एक से अगर अनेक बंदा हो जाए

 

          ग़ज़ल

एक से अगर अनेक बंदा हो जाए।

पानियो का वेग बंदा हो जाए।

मालियों की मेहरबानी चाहिए

फूलो वाली वेल बंदा हो जाए।

गर मदारी के चुगल में आ जाए

डुगडुगी का खेल बंदा हो जाए।

फिर कोई दुशमन ना कोई मित्र है

सूरजो का सेक बंदा हो जाए।

बंद पडी म्यान से फिर निकल पडे

जुलम के लिए तेग बंदा हो जाए।

क्योकि इसको ही क्रांन्ति कहते है

गर बुरे से नेक बंदा हो जाए।

रौशनी देवे अंधेरे चीर कर

दीपकों का तेल बंदा हो जाए।

सीख ले सूरज से कैसे जीतना

जीत कर गर फेल बंदा है जाए।

जिंदगी का सफर सारा इस तरह

बालमा फिर रेल बंदा हो जाए।

बलविन्दर बालम गुरदासपुर

ओंकार नगर गुरदासपुर पंजाब

M 91&9815625409

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