Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जिस तरह भी थी जवानी बीत गई

 


ग़ज़ल 

जिस तरह भी थी जवानी बीत गई।

इक कहानी थी कहानी बीत गई।

ख़ूबसूरत निर्झरों के वेग में,

सूखा पानी तो रवानी बीत गई।

चमकता तारा गगन से टूटा क्या,

आंख झपकी ज़िंदगानी बीत गई।

पतझड़ी में भी शगूफे ढूंढ़ते,

जबकि सारी रूत सुहानी बीत गई।

खत्म हुई लहरें तो ठहरीं किश्तियां,

इक नदी की मिहरबानी बीत गई।

डूब गया सूर्य अंधेरा छा गया,

बात ‘बालम’ थी पुरानी बीत गई।

                                बलविन्द्र ‘बालम’ गुरदासपुर

           ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)

           मोः 9815625409

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ