Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कागजी फूलों कि हैं ये बस्तियाँ

 

काग़जी फूलों की हैं यह बस्तियां।
ढूंढते फिरते हैं बच्चे तितलियां।
और बढ़ती जा रही हैं लौ मेरी,
तेज़ जितनी हो रही है आधिंया।
अब भी लहरों में हैं देखो तैरती,
याद के सागर में कितनी मछलियां?
आस्मां से काले बादल छट गए,
घोंसले फूकेगी कैसे बिजलियां?
यह मिली हम को निशानी प्यार में,
फासले और सिसकती मज़बूरियां।
रौशनी को आजमाने के लिए,
फिर पतंगों ने मिटा ली हस्तियां।
चांद तक तुम को ले जा सकती नहीं,
कश्तियां यह चांदनी की कश्तियां।
कल्पना हो या हकीकत हो मगर,
दूरियां होती हैं फिर भी दूरियां।
इक दुआ बनती गई मेरे लिए,
जब भी गैरों ने उड़ाई फब्तियां।
बिछुड़ते लम्हों में जो तुम ने भरी,
याद हैं अब भी मुझे वो सुबकियां।
रात काली है तो ‘बालम’ क्या हुआ?
इसके आंचल में सुबह की पंक्तियां।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)
मो. 9815625409

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ