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Dr. Srimati Tara Singh
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महापुरूष

 

महापुरूष
पंजाब के पिछड़े क्षेत्रा तथा हिंद-पाकि सीमा के समीप पड़ता है प्रसि( शहर गुरदासपुर। इस शहर
में एक प्रसि( कहानीकार पुरानी सब्जी मंडी के नज़दीक किराए के साधरण घर में सपरिवार रहता था। इस
लेखक ने प्राईमरी अध्यापक से अपनी सरकारी नौकरी शुरू की तथा एक प्राईवेट मान्यता प्राप्त काॅलेज के
प्रिंसीपल के पद से सेवानिवृत हुए। इस लेखक को सत्त्कार से सब ‘बाऊ जी’ कह कर पुकारते। बाऊ जी
अपनी शख्सियत का पूरा-पूरा ख़्याल रखते। गर्मियों में बढ़िया गर्मियों वाले वस्त्रा ;परिधनद्ध तथा सर्दियों में
पैंट, कोट, टाई तथा जंचवी पगड़ी वांध्ते। उनके कपड़े कुछ अलग ही होते, विदेशी से नज़र आते, जैसे
बहुत क़ीमती वस्त्रा हों। बोलचाल में ध्ैर्य, मीठास, मध्ुरता तथा संतुलित भाषा उनकी कर्मठता में लबरेज़
होती। वह बिल्कुल शाकाहारी थे तथा साधरण स्तर का भोजन करते। लेखक छोटा हो या बड़ा, नया हो या
पुराना, बाऊ जी सबके समागमों में ज़रूर जाते।
कम लेखक हैं जो महानता तथा इन्सानियत के परिपूर्क हैं। बाऊ जी की कहानियों के पात्रा झुकते
नहीं तथा न ही झुकाते परंतु सहमति के अवसर पर बदलाव करवाने की कर्मठ शक्ति रखते। जो दीपक समय
का अंध्ेरा दूर नहीं कर सकता, उसको बदलने की क्षमता रखते।
बाऊ जी के स्वभाव में चिंतन तथा आचरण इस तरह के थे कि सहज रूप में केवल शु(, शुभ तथा
उत्त्तम तत्त्वों को गृहण करने की समथ्र्य रखते तथा अत्यंत मुश्किल को भी हल करने तथा झेलने की
समथ्र्यशक्ति रखते। चिंतन को जगाने के लिए इनकी कहानियों के पात्रा अग्नि का कार्य करते। उनकी
कहानियां वर्तमान समय की संवेदनशील घटनाओं पर आधरित होती।
जीने के जो साध्न होते हैं वह संघर्ष के प्रतीक होते हैं। यही संघर्ष साहित्य तथा कला को अपने
उत्तम कर्म तक पहुंचाता है। सामाजिक कुरीतियों तथा परम्पराओं को तोड़ने की सफल कोशिश तथा ध्र्म
जैसी विडम्नाएं को तोड़ने की ललक रखती हैं उनकी कहानियां।
महां पुरूष उत्साही तथा परोपकारी होते हैं। लोगों के प्रति सच्चे ईमानदार होने के कारण अपना स्वार्थ
त्याग कर लोगों के कार्यों को प्राथमिक्ता देते। एक बार काम स्वीकार कर लें तो उसको पूरा करके ही
छोड़ते। प्रत्येक तड़पती शैय को अपना ही कलेजा समझ लेने की समथ्र्य रखते। यह महां पुरूष ही होते है।
जो वक़्त के सांचे बदल देते हैं।
बाऊ जी की कहानियों में बेइन्साफी के खि़लाफ डट कर टिकने की समथ्र्य वाले सच्चे पात्रों की
ललकार होती। कहानियों के पात्रा जान तली पर रख कर चलते फिरते हैं बेइन्साफी के खि़लाफ। चुनौती
भरपूर ललकार जो अपने अर्थों को साकारत्मिक रूप देने के लिए तत्पर रहती। उनकी कहानियों में एक
चिंगारी सुलगती रहती। एक घना ध्ूआं आसमान को उठता नज़र आता। एक अग्नि विशाल स्वरूप लिए
समाज को रौशनी देती प्रतीत होती। शांत ठंडे समुन्दर में उठते ज्वालामुखी की तरह संवाद होते जो ;कहीं
न कहींद्ध आनन फानन किसी क्रान्ति को जन्म देने में सही सि( होते। बेइन्साफी के खि़लाफ हक, सच्च,
इन्साफ के बुनियादी पौधें को ज़ुररत की ताक़त ही नहीं देते थे, बल्कि उन्हों की हिफाज़ित के लिए एक
सच्चा माली भी ला खड़ा करते। आंध्ी-तूफानों को रोकने के लिए कहानियों के पात्रा एैसे संवाद रचाते कि
पर्वत बनने की समथ्र्य रखते। उनकी कहानियों में लाचार, बेबस, वेपत्त, बेइज्ज़त होती महिलाएं-बेटियों के
हाथों में खंजर-तलवारें तथा बुरे समाज से लड़ने के लिए मुक़ाबला करने लिए जोश, निर्भीकता तथा क़त्त्ल
करने की ज़ुररत होती न कि खुदकुशी करने के लिए डरपोक हों। समाज की विडम्बनाएं तथा अंध्विश्वास
के खि़लाफ उन्होंने डट कर लिखा। बेगानों तथा बेसहारों को कलेजे से लगा कर मदद करने के मसीहा रहे।
बाऊ जी इन्सानी कदरें कीमतों ;मूल्योंद्ध को तरज़ीह देने के स्वभाव वाले सरल व्यक्ति थे। जब बाऊ
जी एक जे.बी.टी. अध्यापक की सेवाएं जवानी में निभा रहे थे तब उनके परिवार के लगभग पांच बेटे बेटियां
भी थे जो प्राईवेट तथा मिडल स्कूल तक की शिक्षा ले रहे थे। जवानी में ही उनकी कहानियों की कई पुस्तकें
प्रकाशित हो चुकी थीं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनके अनेक लेखक, यार-दोस्त, प्रशंसक तथा अनुयाई
बन चुके थे।

बाऊ जी का एक प्रसि( लेखक दोस्त किसी दूसरे शहर में रहता था। उस दोस्त लेखक की कोई
चार-पांच वर्ष की दो बेटियां थीं। अचानक ही उस लेखक दोस्त तथा उसकी पत्नी की एक हादसे में मृत्यु
हो गई। अब घर में उन दो नन्हीं जानों को कौन संभाले?
बाऊ जी के पास लेखक दोस्त की हादसे में हुई मृत्य की ख़बर पहुंची तो यह भी पता चला कि
उनकी दो बेटियों को कोई भी संभालने के लिए तैयार नहीं। किसी उद्यम ;कोशिशद्ध के साथ बाऊ जी उन
दोनों लड़कियों को अपने घर ले आए। अपने घर में उनको परवरिश के लिए स्वीकार कर लिया।
एक जे.बी.टी. टीचर, ऊपर से पांच बच्चे अपने तथा अन्य दो बेगानी लड़कियों की जिम्मेवारी किसी
पर्वत के भार से कम नहीं थी। बाऊ जी ने उन दोनों लड़कियों को अपनी बेटियों की तरह पालन-पोषण
शुरू कर दिया।
समय पंख लगाकर उड़ता गया। बाऊ जी ने अपने बच्चों को काॅलेज तक की शिक्षा दिलाई तथा उन
दोनों लड़कियों को एम.ए. एम. फिल तथा पी.एच.डी. करवा कर उनके विवाह अच्छे घरों में कर दिए। दोनों
लड़कियां विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका के पद पर सेवाएं निभाने लगीं। यह दोनों लड़कियां बाऊ जी को बहुत
प्यार-सत्कार देतीं तथा अपने बाप की तरह ही मिलती तथा बाऊ जी भी उनको दिल जान से बेटियों से
ज्यादा प्यार-सत्कार देते।
समय कुलांचे भरता चलता गया। हिम्मती लोग समय के गुलाम नहीं होते, समय उनका गुलाम हो
जाता है। समय की छाती पर वर्तमान तथा भविष्य का इतिहास सर्जन करते। इस तरह के लोग सूरज की
भांति होते हैं जिनकी रौशनी से सारा आसमां ही नहीं, सारी सृष्टि तथा काएनात देदीत्यमान होती है तथा सूरज
के पारस से लगकर बल्कि कई सूरज और पैदा होते जाते हैं।
बाऊ जी अपनी सेवानिवृति के पश्चात अपने लेखन में और मसरूफ हो गए तथा अपने अच्छे शिष्यों
को अच्दे रास्ते, अच्छी अगुवाई करने के फर्ज़ देने के लिए क्रियाशील तथा और कमर्ठ हो गए। बेशक उनको
बहुत अच्चकोटि के मान-सम्मान नहीं मिले, जो सम्मान मिले वो बुढ़ापे में मिले।
अब उनकी उम्र काफी वृ(ावस्था में ढ़ल गई थी तथा एक छोटी सी बीमारी के बाद इस फ़ानी दुनियां
को अलविदा कह गए। उनके सत्कार तथा अंतिम अरदास के समय अनेकानेक लेखक, बु(िजीव, पत्राकार,
संपादक, रिश्तेदार, यार-दोस्त, प्रशंसक तथा उनकी और से अपनाई गई दोनों बेटियों के परिवार भी पहुंचे।
इस दुख की घड़ी के समय सबसे ज़्यादा वे दो लड़कियां रो रहीं थी कि वे रोते हुए कह रहीं थीं कि ‘लोगो
आज हमारा रब्ब मर गया जे, हमारे प्यारे पिता जी हमसे दूर चले गए, हम बेचारियों को बेसहारों को ज़िंदगी
दे गए।’
उनमें से एक बेटी बुसकते हुए कह रही थी कि बाऊ जी जैसा दुनियां में कोई नहीं हो सकता तथा
न होगा। एक बेटी कह रही थी कि बाऊ जी ने सारी उम्र रैग के कपड़े ;वस्त्राद्ध तथा सैकण्डहैंड बूट ही पहने।
वह पैंट, कोट, टाई भी रैग वाली कपड़ों की दुकान से लाते थे। वह महान आत्मा थे जिन्होंने अपनी इछाओं
की कुर्बानी देकर हमको ज़िंदगी बख्शी। वह महान बाप, दार्शनिक, लेखक, अच्छे इन्सान, अच्छे दोस्त तथा
महां पुरूष तो थे ही परंतु वह अपनों के तो है ही थे परंतु बेगानों के भी मसीहा थे। सच हक की प्रतिमा।
उनकी यादों की खुश्बू कभी नहीं मरेगी।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध मो.ः 98156-25409

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