Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

नईं उल्फत नई उम्मीद के झूले झुलाता है

 

ग़ज़ल

नईं उल्फत नई उम्मीद के झूले झुलाता है।

खुशा-ए-दिल ज़माना साल नौ के गीत गाता है।

तेरे जाने से मेरा दिल मुझे क्या-क्या दिखाए रंग,

कभी मुझ को हंसाता है कभी मुझ को रूलाता है।

ग़रीबी में किसी बूढ़े से शादी कर के बेटी की,

किसी मां का कलेजा खून के आंसू बहाता है।

फसल बोने से कटने तक उसे कुछ भी नहीं बचता,

कर्ज़ में डूब कर म़ज़दूर बस इक ग़म बचाता है।

भरोसा रख तू अल्ला पर खुशी के दिन भी आएंगे,

सदा यह दिन नहीं रहते यह ग़म आता है जाता है।

तुम्हारी याद का भोसा मेरे होठों को छू जाए,

सुबह की झील में जब डूब कर सूरज न हाता है।

चला जाता हूं बचपन में वक्त की सीढ़ियां चढ़ कर,

कोई निर्धन, भिखारी बन के जब नग्मे सुनाता हे।

यह बंदा कुछ नहीं ‘बालम’ यह अपने कर्म पर निर्भर,

किसी को कौन देता है, किसी का कौन खाता है।

                                बलविन्द्र ‘बालम’ गुरदासपुर

                                ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)

                                मो. 9815625409


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ