भाई-बहन के पवित्रा रिश्ते का त्यौहार है ‘रक्षा बंध्न’
छोटी-छोटी खुशियों का संग्रह है जीवन। अगर समाज में उत्सव ;त्यौहारद्ध न हों तो मानव का जीवन जड़हीन, उदासीन, निराशाजनक होकर रह जाए। उत्सव सबको अच्छे लगते हैं। ध्न्ध व्यवसाय और शुल्क जीवन व्यवहार के बोझ के तले दबा हुआ मानव उत्सव के दिन थोड़ी सी मुक्त सांस लेकर राहत महसूस करता है। जीवन के अर्थ को खुला आंगन मिलता है। हृदय प्रसन्नता, संकल्प लेकर मन की खिन्नता को दूर हटा कर आनंद प्राप्त करता है। उत्सव यानी मनुष्य के ऊहर्व-उन्नत बनाने वाला, द्विज बनाने वाला तथा संस्कारी बनाने वाला। उत्सव ऐक्य के साध्क, प्रेम के पोषक, प्रसन्नता के प्रेरक ध्र्म के संरक्षक और भावनाओं के संवध् का हैं।
इसी संदर्भ में प्रत्येक वर्ष त्यौहार आता है रक्षा बंदन। रक्षा बंदन अथति प्रेम बंध्न। आज के दिन बहन भाई के हाथ ;कलाईद्ध पर राखी बांध्ती है और हर्ष के साथ भाई के हृदय को प्रेम से बांध्ती है। भाई बहन का मिलन यानी पराक्रम, प्रेम, साहस तथा संवम का सहयोग।
भारतीय संस्कृति में स्त्राी को भोगदासी न समझकर उसका पूजन करना प्रथम कर्तव्य है। रक्षा बंध्न का उत्सव भाव दृष्टि परिवर्तन का उत्सव। राखी बांध् कर भाई रक्षण की जिम्मेदारी उठाता है ताकि समाज में निर्भय होकर घूम सके।
भाई को राखी बांध्न से पहले बहन उसके मस्तिष्क पर तिलक करती है। यह तिलक भाई के लिए शुभकामना, अच्छे विचार तथा बल-बु(ि का प्रतीक है। बहन भाई का तीसरा नेत्रा-बु(ि है जिसे खोल कर उसे विकार, वासना इत्यादि को भस्म करने की सूचना करती है।
भाई के हाथ पर राखी बांध्कर बहन उससे केवल अपना रक्षण नहीं चाहती परंतु समस्त स्त्राी जाति के रक्षण की कामना रखती है। साथ साथ भाई की प्रत्येक कार्य में विजय प्राप्त हो।
भाई बहन के सच्चे-निःस्वार्थ मिलन को राखी कहते हैं। सिक्ख इतिहास में भी भाई-बहन के मिलन की एक सर्व-उच्च मिसाल मिलती है। जब श्री गुरू नानक देव जी को उनकी बहन बीबी नानकी ने भोजन बनाते हुए याद किया तो श्री गुरू नानक देव जी सब कार्य छोड़ कर बीबी नानकी के पास पहुंच गए। बीबी नानकी भाई को देख कर गद-गद हो उठी। उनकी प्रसन्ता, खुशी का कोई ठिकाना न रहा और श्री गुरू नानक देव जी ने प्यार से भोजन किया तथा बीबी नानकी को शुभकामनाए, आशीर्वाद दिए। श्री गुरू नानक देव जी तथा बीबी नानकी ;भाई-बहनद्ध का पवित्रा मिलन ही रक्षा बंध्न कहलाता है। प्यार से, हृदय से बहन याद करे और हर्षता के साथ भाई मिलने जाए यही है प्रेम-बंध्न, यही भारतीय संस्कृति में देवासुर संग्राम देवताओं की विजय के निमित इन्दाणी ने हिम्मत हारे हुए इन्द्र के हाथ में राखी बांध्ी थी। अभिमन्यु की रक्षा के निमित्त कुंता माता ने उसे राखी बांध्ी थी और अपनी रक्षा के लिए राणी कर्मवती ने हुमायूं को राखी भेजी थी। राखी में उभय पक्ष की भावना समायी है।
रक्षा बंध्न यानी स्त्राी की ओर देखने की दृष्टि बदलना, रक्षा बंध्न यानी बहन की रक्षा की जिम्मेदारी। रक्षा बंध्न यानी भाई-बहन के प्रेम का सच्चा संकल्प, प्रेम की शक्ति, प्रेम का निर्झर, और स्नेह का चमकता सूर्य जो समाज को प्रेम की रौशनी दे।
आजकल मां-पिता के एक या दो बच्चे होने की वजह यह उत्सव कुछ आध्ुनिकता में और विज्ञानक सोच में ढलता जा रहा है। बहन-बहन की कलाई पर राखी बांध्ती है और रक्षा बंध्न का, उच्च बु(ि का, अच्छे विवेक का, माता पिता की सेवा का, समाज की सेवा का संकल्प लेती है। आज की नारी ;बहनद्ध ने प्रत्येक क्षेत्रा में उन्नति पाई है। जिनकी एक ही बेटी है वह अपने पिता को या रिश्तेदारी में किसी भाई को राखी बांध्ती हैं।
रक्षा बंध्न का यह पवित्रा त्यौहार देश-विदेश में मेहनत कर रहे भारतीयों के लिए सर्वश्रेष्ठ त्यौहार है। विदेश में बैठे भाई को बहनें राखी भेजती हैं। और ई-मेल पर, मोबाइल फोन पर एक दूसरे को बधईयां, शुभकामनाएं तथा आशीर्वाद देते हैं।
आजकल राखी सोने की, हीरे की, तथा कई कीमती धतुयों से बनती है। अपनी अपनी समथ्र्य के अनुसार राखी बांध्ी जाती है।
इस दिन बाजार में खूब रौनकें होती हैं। तरह तरह की मिठाईयों ;मिष्ठानोंद्ध से दुकाने सजी होती हैं। अनेक प्रकार की राखी दुकानों पर सजती हैं और हर्ष, उमंग, चाव और एक ललक के साथ राखी खरीदी जाती है। इस दिन रिश्तेदारों की, दोस्तों की बहू-बेटियों को भी मिठाईयां आदि भेजी जाती हैं।
रक्षा बंध्न का उत्सव हृदय का उत्सव है, उन्नति का प्रतीक, अच्छे शु( आचरण का प्रतीक, दृष्टि परिवर्तन का प्रतीक है। धर्मिक श्र(ालु, लोग मन्दिरों में जाकर पूजा करते हैं तथा भगवान को राखी बांध्ते हैं और जीवन की तरक्की, खुशहाली, शान्ति, हर्षता की कामना करते हैं।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध
मोः 98156-25409
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