कविता
श्री गुरू अर्जन देव जी
जून का महीना गर्मी थी कहर की।
तपती थी ध्ूप सिर पर दोपहर की।
जलती लोह को गुरू साहिबान सह गए।
ज़ालिमों का हो जाएगा नाश कह गए।
पा कर शहीदी इतिहास रच गए।
सूर्य की भांति एक आस रच गए।
दुनियां में ऐसा कौन हो सकता?
स्वयं ज़िंदगानी को जो खो सकता।
साल तैंतालीस, महीना सोलह दिन।
शहीदी को वह दे गए सदियों के चिन्ह।
गुरू राम दास जी के घर पैदा हुए।
फिर माता भानी जी की खुशी न समोए।
जन्म स्थान प्यारा गोएंदवाल जी।
नेकी वाले फूलों से भरी है डाल जी।
हुआ था विवाह माता गंगा साथ जी।
पैदा हुए फिर हरिगोबिंद लाल जी।
अमृतसर प्रचार का स्थान सोहना था।
वातावरण कुदरत का मनमोहना था।
अनेक ही भाषायों के ज्ञाता हुए हैं।
ग्रंथ की संपादन के दाता हुए हैं।
चैदह सौ तीस पन्नों का किया संपादन।
सच्चे सहृदय कवियों का अभिवादन।
भट्टð, गुर सिक्ख, भक्तों की वाणी है।
गुरू जी बाणी इस में लासानी है।
जाति पाति रूप रंग के त्याग में।
इन्सानी मूल्य भर दिए प्यार में।
गुरू जी के दो सौ सतहत्तर श्लोक हैं।
चांद सितारों जैसे सच्चे बोल हैं।
उनका यार मीआ मीर ‘बालमा’।
उच्च कोटि वाला था फकीर बालमा।
एैसे याराने कहीं मिलते न बालमा।
बार-बार फूल एैसे खिलते न बालमा।
सूरज का जलता पैगाम रहेगा।
गुरू जी का दुनियां में नाम रहेगा।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध
मोः 98156-25409
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