शहीदों के अद्वितीय सिरताज : गुरू अर्जुन देव जी 23मयी
श्री गुरू अर्जुन देव जी का नाम इतिहास में सूर्योदय की भांति सदैव चमकता रहेगा। उन्होंने अपने नियमों, अनुशासन, पंथ तथा धर्म के लिए जो शहीदी दी वह बेमिसाल है। भारत में ही नहीं अपितु विश्व में उनकी शहीदी बेमिसाल रहेगी। दुनियां के किसी भी व्यक्ति ने आज तक इनते दु:ख, कष्ट और यातनांए झेल कर अपने राष्ट्र की खातिर, देश-धर्म की खातिर शहीदी नहीं दी। इस तरह की शहीदी का जिक्र हमेशा-हमेशा श्री गुरू अर्जुन देव जी के साथ जुड़ा रहेगा। वह सहनशीलता के समन्दर, वाहिगुरू (प्रभु) की कृपा में रहने वाले बुलन्द कर्ममठ इरादे, संझीवालता के पथ-प्रदर्शक, संतुलित मस्तिष्क एंव इन्सानियत के पुजारी थे। ज़ुल्म के आगे डट जाने वाले निर्भीक हृदय के गगन, जिसमें लाखों कोटि-कोटि चांद-सितारे चमकते थे मुहब्बत के, उद्यम के, इन्सानियत के। श्री गुरू अर्जुन देव जी मानवता को, राष्ट्र को एक ऐसा ‘गुरू ग्रन्थ’ के गए हैं जिसमें अनेकानेक ही सूर्यो की रोशनी एकत्रित करके एक महान ग्रन्थ की संपादना की और अपने आप को सूर्य की भान्ति अमर कर लिया। सिख जगत में इसकी बहुमूल्य महानता है। श्री गुरू अर्जुन देव की ने श्री गुरू ग्रन्थ साहिब की संपादना इन्सानी कदरों-कीमतों को मद्देनजर रख कर ही की थी। इस ग्रन्थ का कोई भी श्लोक पढ़ लिया जाए वह इन्सानी कदरों-कीमतों से बाहर नहीं जा सकता। वाहेगुरू, सत् नाम, एक-ओंकार इसी के मूल स्त्रोत हैं। इस महान ग्रन्थ की अपेक्षा तथा कुछ राजनीतिका कारणों से ही उनको शहीदी का जाम पीना पड़ा।
श्री गुरू अर्जुन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को सोढ़ी वंश में श्री गुरू राम दास जी के गृह में माता भानी जी की कोख से श्री गोएंदवाल साहिब, अमृतसर (पंजाब) में हुआ। शादी के काफीअर्से बाद उनको पुत्र-रत्न की प्राप्त हुइ जो छठे गुरू श्री हरिगोबिन्द साहिब जी के नाम से विख्यात हुए। इस पुत्र पर जन्म से ही कई भूमिगत कष्ट होते रहे। श्री गुरू अर्जुन जी के बड़े भाई पृथ्वी उनसे दुश्मनी रखते थे। वह गद्दी एंव धन का लालची था। घर का सारा प्रबंध पृथ्वी के हाथों में था परंतु आदतन वहएक अच्छा इन्सान नहीं था। पृथ्वी के पिता इसी कारण उसको पसन्द नहीं करते थे। श्री गुरू अर्जुन देव जी के कई पत्र जो उन्होंने विरह में पिता जी को लिखे थे उन्हें पृथ्वी चुरा लेता था। बाद में उसकी यह चोरी पकड़ी गई जिससे वह शर्मिन्दा हुआ। इस संताप के साथ-साथ श्री गुरू अर्जुन देव जी अच्छी कविताएं भी लिखते रहे। उनकी कविताएं आध्यात्मिक पक्ष को उजागर करती थीं। वह कई भाषाओं के ज्ञाता थे जैसे कि हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी, फारसी, बृज, मुल्तानी, केन्द्री पंजाबी एंव पंजाबी की बोलियां इत्यादि। उनकी मेहनत, मोह, त्याग, निष्काम सेवा, आध्यात्मिक रूचि इत्यादि को देखते हुए उनके पिता जी ने गद्दी की बख्शीश देने का प्रण ले लिया। वह सितम्बर 1581 को गुरूयाई गद्दी पर विराजमान हुए। श्री गुरू अर्जुन देव जी के तीसरे भाई का नाम बाबा महादेव था। श्री गुरू अर्जुन देव जी कुछ समय अमृतसर में रह कर गुरू की वडाली चले गए। वहां हरिगोबिन्द जी का जन्म हुआ था। फि र अमृतसर आ कर अमृत सरोवर को पक्का करवाया। हरिमन्दिर साहिब (अमृतसर) का निर्माण किया। संतोखसर बनवाया, तरनतारन बनवाया तथा वहां के सरोवर की नींव रखी। करतारपुर, छहरटा साहिब और हरिगोबिन्दपुर भी बसाया। लाहौर की बाऊली का निर्माण किया। रामसर तथा गुरू के बाग की नींव रखी। वह निर्माण कार्यों में काफी दिलचस्पी रखते थे।
श्री गुरू अर्जुन देव जी की दीर्घ प्राप्तियां थी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब की संपादना जो 1601 से लेकर 1604 तक रामसर के किनारे बैठ कर गुरू ग्रन्थ साहिब की हस्त लिखित (पांडुलिपि) तैयार की। इस ग्रन्थ में प्रत्येक धर्म, जाति-पाति से रहित, भक्तों, संतों तथा गुरूओं की बाणी शामिल है। जाति-पाति, धर्म, रंग-नस्ल से ऊपर उठ कर ही इस ग्रन्थ की संपादना की। समस्त भारत के विभिन्न राज्यों के कवियों की रचनाएं शामिल हैं। राष्ट्र को एक विलक्षण आध्यात्मिक ग्रन्थ दिया। भाई गुरदास जी ने इस ग्रन्थ को अपने हाथों से लिखा। इसका प्रकाश 1604 को हरिमन्दिर साहिब अमृतसर में किया गया।
इस महान ग्रन्थ लिखने पर कई ईर्ष्यालुयों ने बहुत विरोधता की क्योंकि वे कविगण जो इस ग्रन्थ की मर्यादा के अनुसार पूरे नहीं उतरते थे उनकी रचनाएं शामिल नहीं की गई। उन कवियों ने ईष्र्या करके इस ग्रन्थ की डट कर विरोधता की तथा उनके बड़े भाई पृथ्वी ने इस विरोधता को और भडक़ाया। भक्त कान्हा, छज्जू, पीलू एंव शाह हुसैन जैसे कवियों का कलाम शामिल नहीं किया गया। इन कवियों ने ईर्ष्या करके वर्तमान सत्ताधारी हकूमत के मालिक जहांगीर तक ग़लत बातें पहुंचाने में कोई कसर न छोड़ी। जहांगीर ने इस ग्रन्थ के कई पन्ने पढ़ा कर देखे परंतु उसको कहीं भी इस्लाम धर्म के विरूद्ध कोई चिन्ह तक न मिला। दूसरी तरफसबसे ज़्यादा कट्टर मुस्लमान वजीर थे शेख अहमद सहरद्दी तथा शेश फरीद बुखारी। इन दोनों ने इस ग्रन्थ की सबसे ज़्यादा विरोधता की। जहांगीर को भडक़ाया गया कि इस ग्रन्थ में इस्लाम के विरूद्ध लिखा गया है। चन्दू शाह जो कि लाहौर में सूबे का दीवान था वह भी गुरू जी से दुश्मनी रखता था और पृथ्वी की भी इस में साजिश थी।
चन्दू ने अपनी बेटी की शादी गुरू जी के बेटे के साथ करनी चाही परंतु चन्दू ने कहीं यह कह दिया कि कहां चन्दू और कहां गुरू? मोरी की ईंट जैसे प्रतीकों का प्रयोग किया। संगत ने चन्दू की विरोधता की तथा संगत के कहने पर गुरू जी ने इस शादी के लिए न कह दी। चन्दू का क्रोध सातवें आसमान को छू गया। उसके सीने में बदले की चिन्गारी सुलगने लगी। चन्दू शाह, शेख अहमद सरहद्दी तथा शेख फरीद बुखारी ने कई किस्त की साजिशें गुरू अर्जुन देव जी के विरूद्ध शुरू कर दीं। एक झूठी साजिश बना कर जहांगीर को पहुंचा दी गई कि बागी खुसरो को गुरू जी ने पनाह दी है, उसकी मदद की है। उसकी मर्यादा अनुसार उसका अभिनन्दन किया है और इस्लाम के ख़िलाफ़भडक़ाया है। शेख अहमद सरहद्दी तथा शेख फ रीद बुखारी इत्यादि ने यह साज़िश एक फर्जी शिकायत बना कर जहांगीर तक पहुंचा दी। गुरू जी ने खुसरों की कोई सहायता नहीं की थी। सारी साज़िश झूठी थी। खुसरो को पनाह देने पर जहांगीर ने गुरू जी को दो लाख रूपए जुर्माना कर दिया। जुर्माना अदा न करने पर सपरिवार आपको गिरफ़्तार कर लिया गया। तीन रातें तथा तीन दिन अत्यंत यातनापूर्वक कष्ट दिए गए, जून की कडक़ती धूप में। जलती लोहे की चादर पर गुरू जी को बिठाया गया जिसके नीचे आग ही आग की लपटें थीं तथा ऊपर से गर्म रेत की बौछार। इस पर भी गुरू जी तनिक भी घबराए नहीं। बेशक मीयां मीर तथा बजीर खां दरबारी धार्मिक नेता सिखी के दायरे में आ चुके थे। उन्होंने लाहौर की ईंट से ईंट खडक़ाने का कहा। यह दृष्य देखने वालों के हृदय कांप उठे परंतु गुरू जी उस वाहेगुरू की कृपा में विश्वास रखते हुए तपती लौह पर बैठ गए। गुरू जी को पानी की उबलती देग में रखा गया। 30 मई 1606 को जहांगीर के हुक्म से रावी दरिया के छोर पर ले जाकर गुरू जी को शहीद कर दिया गया। आपकी याद में अब वहां डेरा साहिब गुरूद्वारा बना हुआ है। दुनियां में यह एक महान शहादत है। इससे कुछ समय बाद बेशक जहांगीर मुआफी मांगने माता गंगा जी के पास आया तथा चन्दू जैसे साजिशी को उनके सुपुर्द भी किया परंतु माता गंगा जी (पत्नी श्री गुरू अर्जुन देव जी) ने उसे प्रभु के भरोसे पर छोड़ दिया। जहांगीर ने कुछ मोहरें चढ़ाईं जिन्हें संगत में बांट दिया गा। गुरू जी ने एकता, सांझीवालता, जाति-पाति एंव रंग-रूप से ऊपर उठ कर शब्दों की रचना की। उनके एक शब्द की पंक्ति जो मानवता के रास्ते खोलती है इस तरह है : कोई बोले राम-राम, कोई खुदाए। कोई सेवे गोस्ईयां कोई अल्लाहे।।
श्री गुरू अर्जुन देव जी ने 30 रागों में बाणी की सृजना की। शब्द 1345, अष्टपदियां 62, छन्द 62, गुरू ग्रंथ साहिब जी की कुल 32 वारों से गुरू जी की 6 वारें, गाऊड़ी, गुजरी, जयतंसरी, रामकली, मारू एंव बसन्त रागों में हैं। इनके अतिरिक्त गुरू जी ने विशेष बाणियां भी लिखीं। श्री राम में पहरे, शब्द मारू में बारह माह, 14 पाऊढिय़ां। गाऊड़ी में 52 अक्षरी 57 श्लोक तथा 55 पाऊडिय़ां, सुखमनी 14 श्लोक तथा 24 अष्टपदियां, आसाबिहरड़े 3 शब्द। सूही में एक शब्द, एक मारू में, अंजुलिया 3, सोहले 14 शब्द। कुछ और बाणियां गुरू अर्जुन साहिब श्लोक सहसकृति 67, गाथा 24, फ नहे, स्वैए। श्लोक 255 हैं। कुल मिलाकर 277 श्लोक, 6 वारें, 110 पाऊडिय़ां इत्यादि। कुल 2312 शब्द हैं। साहिब श्री गुरू अर्जुन देव जी 43 वर्ष, एक महीना, 15 दिन की आयु सम्पूर्ण करके शहीद हुए। उन्होंने उतनी छोटी आयु में वे कार्य किए जो सदैव भारत के इतिहास में ही नहीं अपितु विश्व के इतिहास में सुनहरी अक्षरों में जीवन्त रहेंगे। वह शहीद होकर भी जिन्दा हैं।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)
मो: 9815625409
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