Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सोचने का डर तुम्हें ले डूबेगा

 

सोचने का डर तुम्हें ले डूबेगा।

अपना सारा घर तुम्हें ले डूबेगा।

क्यों सहारा छोड़ते हो तिनके का,

देखना पत्थर तुम्हें ले डूबेगा।

पाप करता है तू छुप कर किस मन से,

रूह का अन्दर तुम्हें ले डूबेगा।

हमने देखा है तजुर्बे का जीवन

तू बुरा तो कर तुम्हें ले डूबेगा।

क्यों भरोसा कर रहा तूं भंवर पर,

एक दिन अकसर तुम्हें ले डूबेगा।

दोस्ती खंज़र से करना ठीक नहीं,

बस यही खंजर तुम्हें ले डूबेगा।

दौड़ ले, जब थक गया तो एक दिन,

वक्त का बंदर तुम्हें ले डूबेगा।

टिमटिमाता मैं हूं जुगनूं, ऐ सूरज,

शाम का मंज़र तुम्हें ले डूबेगा।

कश्तियों से दोस्ती ’बालम‘ ना रख,

तूफां में सागर तुम्हें ले डूबेगा।

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