तांगे से थ्री-व्हीलर तथा कार तक का अदभुत सफर-भोली
भोली एक दमदार एवं मज़बूत महिला है जिसके ध्ैर्य की नींव पर्बत की तरह स्थिर है। पिछड़े क्षेत्रा की कम पढ़ी लिखी महिला होने के बावजूद, उसने शिक्षित महिलाओं से अध्कि मस्तिष्क रखते हुए अपना रोज़गार स्वंय ढूंढा। तांगा चलाने वाले एक निधर््न पिता की बेटी भोली ने घरेलु मज़बूरियों की वजह से ही तांगा चलाना शुरू किया तथा थ्री-व्हीलर तक के सफर को रोज़गार बनाकर मनुष्य जैसी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के अनवरत कोशिशें करते हुए एक दमदार महिला होने का परिणाम पेश करके रख दिया।
बचपन पर ही उस पर कष्टों के कई पहाड़ टूटे। एक महिला होने की वजह से उसको अनेक समाजिक बुराईयोंका सामना करना पड़ा परंतु उसने अपनी हिम्मत नहीं छोड़ी। पुरूष प्रधन समाज में तथा वह भी पिछड़े क्षेत्रा में तांगा चलाना कोई आसान काम नही। बारह-तेरह वर्ष की आयु में उसने तांगे की वागें संभाल ली थीं। तांगा चलाना उसे पुश्तैनी माहौल से मिला परंतु दुखांत की गुट्टðी की तरह। उसकी दर्द-भरी कहानी सुनकर रोए खड़े हो जाते हैं परंतु उसने मज़बूरियों के मुँह पर थप्पड़ मार कर, ध्ैर्य को बांध् कर निर्भीक हौसला लेकर समाजिक कुरीतियों को तिलांजलि देकर ज़ुररत से जीना सीखा है। महिला होकर तांगा चलाना पर्बत जैसी मज़बूरी से शून्य नहीं। गुरदासपुर से डेरा बाबा नानक रोड़ पर उसने कई वर्ष तांगा चलाया। दरम्याना कद्, आवाज़ में पुरूषों जैसी दलेरी। जब उसने तांगे की वागें पकड़ी तक उसकी आयु बारह-तेरह वर्ष की थी। उसके पापा बीमार हो गए। तांगा चलाने से असमर्थय हो गए। हर रोज़ ;प्रति दिनद्ध दवाई लेने के लिए अपने गांव गज़नीपुर से गुरदासपुर ;पंजाबद्ध तांगे पर अपने पापा के साथ जाना शुरू कर दिया। पापा की दवाई लेने के लिए पापा को तांगे की अगली सीट पर बिठा देना तथा उनसे तांगे की भाषा समझना। वह अपने बीमार पापा को तांगे में बिठा कर दवाई दिला कर आते हुए गुरदासपुर से कुछ सवारियां बिठा लेती। बदकिस्मत से उसके पापा स्वर्ग सिधर गए। यह उस पर द्वितीय दुखांत टूटा। कुछ वर्ष पहले उसके दो बड़े भाई इस दुनियां से पूरे हो गए। बड़े से एक लड़की थी और छोटे का एक लड़का था वह भी प्रभु को प्यारा हो गया। लड़की को दसवीं तक की शिक्षा दिलवाई।
कई रिश्तेदार तथा अन्य लोग उसको तांगा न चला कर कोई और काम-ध्ंध करने को कहते। उसने अपने भीतर सोए हुए नारीत्त्व को जगाया। हिम्मत और ध्ैर्य रूह में रखकर दूर-दूर तक तांगा चलाना शुरू कर दिया। शर्माकलता की चादर फैंक दी तथा ज़ुररत से समाज में जीने का प्रण ले लिया परंतु उसका पति कई वर्षों से लापता है। उसको कई बार हज़ारों रूपए ट्टण लेना पड़ा परंतु उसने मेहनत सेउतार दिया। वह 25-26 वर्ष की आयु में तांगा चलाने में परपक्क हो गई। जैसे तांगा उसकी ज़िंदगी हो और तांगा है भी उसकी ज़िंदगी। उसने कहा कि एक महिला को तांगा चलाने पर बहुत समस्याएं आढ़े आती है। कई तरह के अच्छे-बुरे लोग मिलते हैं। कई तमाशबीन लोग तरह-तरह के व्यंग्य तथा फब्तियां छोड़ते हैं परंतु वह परवाह नहीं करती। महिला में हिम्मत, दलेरी तथा संयम हो तो किसी की क्या ज़ुररत कि कोई आँख उठा कर देख सके। महिलाओं को गुलाम नहीं रहना चाहिए। अच्छे कार्यों की ओर ध्यान देना चाहिए। अगर कोई महिला शिक्षित नहीं तो उसको हिम्मत नहीं छोड़नी चाहिए। उसने तांगे के जरिए घर बनवायाऋ टी.वी. खरीदा और रोज़ मर्रा की सुविध पैदा की। बहन की शादी की। कई बार दस-दस दिन कोई पैसा नहीं आया तो भी उसने परवाह नहीं की। लगन, संकल्प एवं शक्ति का पल्लु नहीं छोड़ा।
भोली, ट्रैक्टर, कार, स्कूटर, थ्री-व्हीलर ही नहीं, प्रत्येक किस्म का चार पहिया वाहन चला लेती है। ट्रैक्टर से वह खेती भी करती रही। किसी का ट्रैक्टर लेकर उसने धन एवं गेहूं की फसल भी बोई है। उसकी बेशक ज़मीन ;खेतद्ध नहीं परंतु आध्ी फसल पर बो लेती थी।
उसने एक दिलचस्प घटना बताते हुए कहा कि एक समय की बात है, जिस स्कूल के मैं बच्चे छोड़ने जाती थी, जब मैं बच्चो को घर-घर छोड़कर अचानक फिर स्कूल आई तो स्कूल बंद हो चुका था। परंतु जब मैंने स्कूल के भीतर झांककर देखा तो एक आदमी ;चोरद्ध स्कूल के पंखे उतार रहा था। फ्मैं हिम्मत करके दीवार फांद कर एक अंदर चली गई। मैंने शोर मचाया परंतु मेरी सहायता के लिए कोई न आया। मेरे हाथ एक लाठी आ गई और मैंने उस चोर के ऊपर लाठी से ताबड़-तोड़ वर्षा कर दी। वह दुम दबाकर भाग गया। अगले दिन स्कूल वालों ने मुझे पांच सौ रूपए ईनाम दिए।य्
अब भोली ने आर्थिक जुगाड़ कर थ्री-व्हीलर तथा कार भी खरीद ली है। आजकल वह गुरदासपुर में थ्री-व्हीलर पर स्कूली बच्चे भी छोड़ने-लेने जाती है। वह अपनी हिम्मत में परिश्रम के भव्य सुमन पिरो कर अच्छी ज़िंदगी व्यतीत कर रही है। बेरोज़गार लड़के-लड़कियों के लिए भोली एक उ(ाहरण है। उसकी एक ख्वाहिश है कि अगर सरकार या कोई और संस्था उसकी आर्थिक सहायता करे तो वह कार लेकर और बेहतर ज़िंदगी बिता सकती है। उसने कहा कि शहर में मेरे पास अच्छे कमरे नहीं। कोई मेरी मदद करे तो एक-दो कमरे अच्छे बनवा लूं। भविष्य में कोई संस्था या सरकार इस अत्यंत परिश्रमी, कर्मठ और हिम्मती महिला की सहायता करे तां जो समस्त नारीत्त्व का गौरव बड़ सके।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध मो.ः 98156-25409
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