Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं

 

तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं
उर्वर भूमि के मालिक उद्यम कृषक सुन।
नींव के सृजक प्रभाकर श्रमिक सुन।
तेरे ख़ून पसीने में तो सूरज है।
सुन्दर काएनात तिरी ही मूर्त है।
रीस तिरी कर सकता भी भगवान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
कर्मठता का सारा तन्मय तेरा है।
अम्बर भीतर तेरे साथ सवेरा है।
तेरे नयनों से ही चांद सितारे हैं।
तेरे करके ध्रती पास नज़ारे हैं।
तुझ से ऊँची-सच्ची कोई शान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
ध्र्म तिरा है ध्रती, ध्रती जात तिरी।
सौहार्दता में चढ़ती प्रभात तिरी।
कण-कण तेरा अपना कोई ना दूजा है।
श्रम तेरी में मन्दिर जैसी पूजा है।
कौन तिरी हिम्मत से कुर्बान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
तेरे सदके सूखे में खुशहाली है।
महक रही गुलशन की डाली डाली है।
पर्वत चीर दिखावें, कुण्ड़-नहर निकालें।
सहरा का सीना चीर समन्दर निकालें।
और किसी का ऐसा तो ईमान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
आविष्कारों के सिर ताज रखाए तू।
चांद के ऊपर जा कर चांद सजाए तू।
उन्नति का तू सच्चा सूत्राधर रहा।
तेरे में अलौकिक एक भण्डार रहा।
तू अन्नदाता है तेरी पचहान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
मूल्य तेरा न पाए नेता रिश्वतखोर।
क़दर तेरी पड़ जाती ग़र होते और।
तेरा ख़ून-पसीना लूटा चोरों ने।
बाग़ में सुन्दर नाच रचाते मोरों ने।
तू नहीं कोई भोला तू नादान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
क्रान्ति आएगी तू हिम्मत रख जरा।
ज़हर खड़प्पे-बीसियर का भी चख जरा।
सांपों का कब्ज़ा है वर्मी के ऊपर।
ध्ैर्य बांध् कर रख किस्मत से ना ड़र।
अब वर्मी में सांपों का स्थान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
वैकुण्ठकी परिभाषा काशतकारी में।
कुंदन उगता तेरी कारगुजारी में।
मिट्टðी तेरी पूजा मिट्टðी भक्ति है।
तेरे सिर पर मानवता की शक्ति है।
तेरे बल के आगे ‘बालम’ बलवान नहीं।
तेरे जैसा दुनियां में इन्सान नहीं।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाब

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ