Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिन वजह मुखड़े से मुखड़ा मोड़ कर

 

ग़ज़ल

बिन वजह मुखड़े से मुखड़ा मोड़ कर।

आदमी टूटे हैं रिश्ते तोड़ कर।

प्यार को फिर जोड़ने में हर्ज क्या,

रख ले गुल्लक में पैसे जोड़ कर।

सहरा से क्यों बदआशीषें लेता है,

पानियों को पानियों में छोड़ कर।

पत्थरों के साथ कर ली दोस्ती,

दर्पणों को तोड़ कर मचकोड़ कर।

उस खुदा ने रात का सृजन किया,

सूरजों को मुट्ठी में नीचोड़ कर।

ग़ज़ल लिखना खेल नहीं है ‘बालम’

तारों को फिर जोड़ देना तोड़ कर।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर

                        ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)

                        मो. 9815625409

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