Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घर-घर में है बात पहुंचाई बालम की

 

             ग़ज़ल
घर-घर में है बात पहुंचाई बालम की।
सच्च कहने पर शामत आई बालम की।
तितली के पंखों को किसने नोचा है,
करूणा में आँख भर आई बालम की।
फूलों ऊपर यौवन की अंगड़ाई है,
एैसे लगता खुशबू आई बालम की।
इक-इक कर के सारे तारे टूटे हैं,
नीलगगन तक है अंगड़ाई बालम की।
कविता में धंद-वज़न का प्रभुत्त्व है,
लय में बजती है शहनाई बालम की।
बंद समुन्दर के बांध भी टूटेंगे,
टूटेगी जब भी तनहाई बालम की।
पहले से और प्रतिष्ठा बढ़ गई है,
ज्यों-ज्यों बढ़ती और बुराई बालम की।
बेशक धरती अम्बर को तुम माप सको,
कैसे मापोगे गहराई बालम की।
निर्धन के घर सूरज पैदा कर देगी,
मदद बनेगी जब चंगाई बालम की।
पतझड़ में भी कितनी सुन्दर लगती है,
गुलशन भीतर रूत सजाई बालम की।
अर्थी को फिर कंधा देकर रोएगी,
दुश्मन से भी सांझ बनाई बालम की।
उस की कविता भीतर सूरज उगते हैं,
अम्बर में है राहनुमाई बालम की।
मेरे सिर पर हाथ उसी ने रखा है,
कुदरत ने हर चीज बचाई बालम की।
कविता के फूलों की एैसी सृजनता,
खुशबू से भी अधिक लम्बाई बालम की।
फिर भी उस को हर कोई अपना कहता है,
वैसे हर इक चीज़ पराई अपना कहता है।
फिर भी अम्बर तक याराने रखता है,
पाँच फुट, छह इंच उच्चाई बालम की।
मुद्धत बाद मिला वैसे का वैसा है,
बलविंदर ने होश उड़ाई बालम की।

बलविंदर बालम गुदरासपुर
ओंकार नगर गुरदासपुर पंजाब
मों - 98156-25409


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