Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घर की बासी रूखी सूखी खाए मां

 

घर की बासी रूखी सूखी खाए मां।

फिर भी बच्चे की खातिर मुस्काए मां।

भगवान नहीं सिमरन में बस आए मां।

दुख में जब जब मुंह से निकले हाए मां।

सूरज जैसा मां का हृदय देखा है,

सर्वस्व लुटा कर फिर भी है मुस्काए मां।

भारतीय मां का चित्र जरा तुम देखो तो,

गेद में बच्चा, सिर पर बोझ उठाए मां।

बिछड़े बेटे की अर्थी के साथ चले,

खुद भी रोए औरों को रूलाए मां।

बिछड़ गई है जिन की मां बे कहते हैं,

आए तो फिर दुनियां से ना जाए मां।

शायद उस का अंतिम लम्हा ही ना हो,

देखो बच्चो, हरगिज रूठ ना जाए मां।

खिल जाती ममता की कलियां आंगन में,

मेरे घर में जब भी मिलने आए मां।

कब दौलत की मुश्किल घर में आ जाए,

चुप-चुप के आंचल की गांठ छुपाए मां।

छुटटी लेकर कल आना है पापू ने,

घर का कोना-कोना खूब सजाए मां।

मुदत हो गई ’बालम‘ हंसना, भूल गया,

किधर गई वह मुझ को जो हंसाए मां।

                                बलविन्द्र बालम गुरदासपुर

                                ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)

                                मोबाईल 9815625407


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