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कवि एवं शिरोमणि भक्त धन्नाजट्ट जी

 

प्रकाशोत्त्सव
कवि एवं शिरोमणि भक्त धन्नाजट्ट जी
शिरोमणि भक्त धन्नाजट्ट जी राजस्थान टांक क्षेत्रा के ध्ूआन गांव में 1415 ईः को जट्टð वंश में पैदा हुए। आजकल इस स्थान पर एक प्राचीन कूआं तथा गुरूद्वारा साहिब की इमारित निर्माणाध्ीन है। इस स्थान की सेवा बाबा लक्खा सिंह जी निभा रहे हैं। भक्त ध्न्ना जट्टð जी अपने समय के विख्यात कवि, समाज सेवी, समाज सुधरक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता थे। श्री गुरू ग्रंथ साहिब में उनके चार शब्द अंकित हैं। इन शब्दों में उन्हों ने इन्सानी मूल्यों को मद्देनजर रखकर बहुत ही ख़ूबसूरत तथ प्रभावशाली अलंकार, प्रतीक, तथा बिम्ब ;तश्बीहोंद्ध का वर्णन किया है।
प्रत्येक मानव में एक एैसी ज्योति है, अगर वह प्रज्जवलित हो जाए तो वह जिस तरह की भी प्राप्ति चाहे पा सकता है परंतु इस ज्योति को जलाने के लिए शु( आदतें, शु( आचरण, सहृदयता, परिश्रम, लग्न, भक्ति, साध्ना, प्ररेणा, संकल्प शक्ति, इच्छा शक्ति तथा एकाग्रता की आवश्यकता होती है। जब एकाग्रत चित् होकर निष्कामना से मेहनत करो तो उस मेहनत की मंज़िल की प्राप्ति में प्रत्यक्ष रूप में भगवान ही दर्शन दे देते हैं भाव कि जिस मंज़िल की प्राप्ति के लिए आप एकाग्रत चित् होकर, दुनिया के ध्ंध्े विकार छोड़कर मेहनत-भक्ति की, उस मंज़िल की प्राप्ति ही प्रमात्त्मा की प्राप्ति है। शिरोमणि भक्त ध्न्ना जट्टð जी की प्राप्ति भी कुछ इस तरह की ही है। उस समय मूर्ति को केन्द्र बिन्दू मानकर एकाग्रता की मंज़िल की ओर जाया जाता था। भक्त ध्न्ना जी की जीवन शैली भी कुछ इस तरह के प्रसंग से जुड़ी हुई है। मुख्य रूप में वह प्रसि( कवि, प्रचारक, समाज सुध्रक हुए हैं परंतु उनके जीवन से कई दंत-कथाएं जुड़ी हुई हैं।
शिरोमणि भक्त ध्न्ना जट्टð जी कृषि परिवान से संबंध् रखते थे। वह अपने घर का गुज़ारा कृषि की आय से करते थे। बचपन से ही वह दयालु, सच के पुजारी, सहृदयता के स्वामी, सीध्े सादे तथा सरल स्वभाव के अनुयाई थे। वह एक परिचित शख्सियत त्रिलोचन ब्राह्मण जो सालग राम ठाकुर की पूजा करते थे, उनके संपर्क में आए तथा भक्त ध्न्ना जीन ने त्रिलोचन जी को कहा कि वह भी ठाकुर की पूजा करना चाहते हैं। त्रिलोचन ने पत्थर रूपी ठाकुर देने के बदले एक गाय की मांग की। उन्होंने त्रिलोचन को गाय दे दी तथा पत्थर रूपी ठाकुर ले लिए। भक्त ध्न्ना जट्टð जी भोले-भाले तथा सच्चे इन्सान थे। उनकी लगन सच्चे सहृदय से प्रभु से जुड़ चुकी थी इसी वजह से उन्होंने पत्थर रूपी ठाकुर के बदले गाय दे दी थी। भक्त ध्न्ना जट्टð जी ने एकाग्रचित् होकर भक्ति की। उन में मानवता रूपी ज्योति प्रज्जवलित हो चुकी थी। जिससे सचखण्ड के दरवाज़े खुलते गए। यह भी प्रसंग आता है कि लस्सी और रोटी का भोग लगाकर प्रभु के दर्शन किए। उनको अपने मन मन्दिर में एक दिव्य शक्ति के दर्शन हुए जिससे उन पर भक्ति भाव का गहरा रंग चढ़ गया। वह अपने तन-मन-आत्मा से शु( तथा बाहरी विकारों से मुक्त हो चुके थे। वह लोगों की सेवा में जुट गए तथा क्षेत्रा में भक्त ध्न्ना जट्टð जी के भक्ति भाव की प्रसंसा एवं उसतत ;ख्यातिद्ध दूर-दूर तक होने लगी। उनके द्वार पर दूर-दूर से बु(िजीव, विद्वान, साध्ु-संत, महात्मा इत्यादि ध्र्मचर्चा के लिए आने लगे। उन्होंने प्रभु भक्ति के आर्शीवाद अपेक्षा बाणी ;रचनाएंद्ध भी लिखीं। अपने ज्ञान-लेखन को और मानवतावादी बनाने के लिए स्वामी रामानंद जी को काशी में जाकर गुरू धर लिया। रामानंद जी से कई वर्ष शिक्षा-दीक्षा लेकर ब्राह्मण ज्ञान को प्राप्त हुए तथा उच्चकोटि की बाणील लिखी। समाज को सही अर्थों से परिचित करवाया। उनकी कविताएं ;चार शब्दद्ध श्री गुरू ग्रंथ साहिब में शोभाएमान हैं, जिनकी बदौलत वह संसार में अमर हैं। उनके शब्दों की कुछ पंक्तियांः- जोति समाए समानी जा कै अछली प्रभु पहचानिआ।। ध्न्ने ध्न पाया ध्रणीध्र मिलि जन संत समाया।। तथा पारवणि कीट गुप्त होए हरता ता चों मार्ग नाही।। कहै ध्न्ना पूर्ण तारू को मतरे जीअ डरांही।।
शिरोमणि भक्त ध्न्ना जट्टð जी की बाणी में सिमरन, भक्ति, सादा जीवन, प्रभु कृपया, मन, निरंकार की भक्ति, श्र( इत्यादि तत्त्वों का ज़िक्र मिलता है। उनके चार शब्द 29 से 32 मात्राओं की बहिर ;वज़नद्ध में संश्र्ण होते हैं। उनका प्रकाशोत्त्सव हमेशा ही समाज के लिए प्रभु प्रति श्र(ा का प्रतीक रहेगा।
बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर, गुरदासपुर ;पंजाबद्ध मो.ः 98156-25409


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