मिल जाते कुछ ऐसे चेहरे राहों में।
सात समन्दर आ जाते हैं बाहों में।
मेरी पीड़ा का धूआं फिर फैल गया।
किस की बन गई है तस्वीर हवाओं में।
मेरे दिल का दर्द चमन निमार्ण करे,
लाखों ही खिल जाते फूल ख़िज़ाओं में।
कब की मर चुकी है सबकी सब यादें,
किसी की आई है फिर खुशबू बाहों में।
म्यूर, कबूतर, तोते मेरे ज़ख़्मों के,
बन जाते हैं लाखों बिम्ब घटाओं में।
उसने इतनी शिद्धत से क्या देखा था,
अब तक उसकी है तस्वीर निगाहों में।
उसकी आंखों में लाखों उत्सव हैं
मेला बन कर आया कोई गावों में।
बापू जैसा लगता है वो बूढ़ा वृक्ष,
राही कोई सोता है जब छावों में।
बाज़ार नहीं मिलता, बालम मिलता है,
कविता, ग़ज़लों, दोहे, गीत, कथाओं में।
बलविन्द्र ‘बालम’ गुरदासपुर
ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)
मोः 9815625409
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY